आर्यसमाज के विषय में आज लोगों में भिन्न-भिन्न प्रकार की भ्रान्तिया है। कुछ लोगों का मानना है की आर्यसमाज नास्तिक संगठन है जो ईश्वर को नहीं मानते। मूर्ति-पूजा के विरुद्ध है। आर्य समाज के नियम बहुत कठिन है। आर्य समाज एकमात्र ऐसा संगठन है जो लोगों को बरगलाने का कार्य करता है और भी बहुत सारी बाते है जो विभिन्न मत-सम्प्रदाय के द्वारा कही जाती है।
आर्य समाज कोई मत, पन्थ या सम्प्रदाय नहीं है क्योंकि यह ईश्वरिय ज्ञान वेद पर आधारित है। जिसका मुख्य उद्देश्य वेद प्रचार द्वारा जनता को सच्चे वैदिक धर्म की शिक्षा देना है। जैसे ईश्वर नित्य है, वेद ज्ञान नित्य है।
आर्य समाज वेदज्ञान के आधार पर आपकी आँखों से झूठ का पर्दा हटाकर आपको सत्य-सत्य जानकारी से अवगत कराने का प्रयास करता है।
वेद कहता है कि जो वस्तु जैसा है उसे वैसा ही मानना सत्य है। जब कि वो कहते हैं कि मानो तो देव ना मानो तो पत्थर! अर्थात आप पत्थर को देवता मानते हो तो वह देवता है। नहीं मानते हो तो वह पत्थर है।यदि कोई आपसे पूछता है कि आपसे किसने बोल दिया कि वह देवता है? तो आप कहेंगे की यह बात तो परंपरा से चली आ रही है। तो परंपरा भी तो गलत हो सकती है। झूठी हो सकती है। तो आप कहेंगे कि आप तो हमारे भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं। जबकि धर्म के साथ भावना का कोई भी संबंध नहीं है। आप उस भावना से झूठ को कभी भी सत्य नहीं सिद्ध कर सकते। एक आदमी कहता है की जमीन पर खड़े खड़े ही उसने चांद के दो टुकड़े कर दिए। तो दूसरा आदमी कहता है की हनुमान जी ने तो सूर्य को ही खा लिया। फिर आप अपनी बात को जस्टिफाई करने के लिए कहते हैं की यह तो मेरी आस्था है।
आप गलत आस्था से किसी झूठ को सत्य में कैसे परिवर्तित कर सकते हैं? यदि फिर भी आप कहते हैं मानो तो देव ना मानो तो पत्थर यह सत्य है। तो आपको मुट्ठी में रेत लेकर यह भी मानना पड़ेगा कि मानो तो चीनी ना मानो तो रेत। क्या यह मानकर रेत को चीनी में परिवर्तित करना आपके लिए सम्भव हो सकता है?
यहां आपकी आस्था कहां चली जाती है?
नहीं कभी भी सम्भव नहीं। क्योंकि भावना के द्वारा आप कभी भी झूठ को सत्य में नहीं बदल सकते। जबकि वेद भी इस तरह की बातों से साफ मना करता है।
वेद कहता है कि जो वस्तु जैसा है उसे वैसा ही जानना व मानना सत्य है।
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