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( गूगल देवता से साभार ) |
सब के साथ प्रीति पूर्वक, धर्मानुसार, यथा योग्य वर्तना चाहिए अर्थात जैसे के साथ तैसा व्यवहार करना चाहिए.
महर्षि दयानंद सरस्वती
उठो द्रौपदी उठो
अब उठो संघर्ष करो, अबला खुद को क्यों मानती हो
यहाँ तो सारे है अंधे बहरे, न्याय कहाँ तुम मांगती हो
पुत्र मोह में अंधा ध्रिष्ट्रराष्ट्र, अब क्या तुम्हे बचाएगा
वह बूढा महाबली भीष्म ?
ये तो प्रतिज्ञा की आड़ में, जा के कहीं और छुप जाएगा
या टुकड़ों पर पला द्रोण ? इनकी आशा करना व्यर्थ है
अपने भी काम ना आयेंगे, यदि तू स्वयं असमर्थ है
हर बार छला गया तुम्हे द्रौपदी, उठो अब खुद को पहचानो
क्या फर्क पड़ता है नामों से, सीता आहिल्या हो या शाहबानो
तुम सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु हो, पुरुषों के अहम् का शिकार
वो लालायित हैं नग्न सौन्दर्य के, किसने कब सुनी तेरी पुकार
जलती रहो तुम तिल तिल कर, कौन सुने तेरा रोदन
आज सभा मदमस्त हुई, उसे चाहिए बस तेरा यौवन
पांसों के इस क्रूर खेल में, शकुनी ने जब भी चौसर बिछाया है
तब- तब युधिष्ठिर ने आगे आकर, तुम्हे ही दावं पर लगाया है
अर्जुन ने है गांडीव उठाया, कौरवों से प्रतिरोध की
भीम के भीतर धधक रही, ज्वाला है प्रतिशोध की
लेकिन क्या ये तुम्हारे लिए है ? ……..
नहीं द्रौपदी नहीं ! …… मत करना इसका गुमान
नहीं बचाने आएगा आज, कृष्ण भी बनकर भगवान्
रणचंडी बन वार करो, दू:शासन को सबक सिखाने को
मत सोचो अब कोई मसीहा, आयेगा तुम्हे बचाने को
वह क्या कायर निर्लज्ज निशाचर, तुम पे आँख उठाएगा
तुम्हे चुन- चुन मार गिराना होगा, जो तुमसे टकराएगा
तुम कहीं दीप कहीं ज्वाला हो, तुम प्रेमचन्द निराला हो
तुम्ही से भारत का विकास, तुम रत्नजटित एक माला हो
तुम्ही इलेक्ट्रान प्रोटान न्यूट्रान, तुम्हे परमाणु भार हम समझते हैं
तुम्ही आइसोटोप और आइसोबार, तुम्हे ज्वार वार हम समझते हैं
तुम्ही हो शक्ति तुम्ही हो दुर्गा, काली बन कर करो नर्तन
हो जाने दो आज प्रलय तुम, उठ कर हुंकार करो भीषण
नग्न करने को जो हाथ बढे, उस हाथ को जड़ से उड़ा दो तुम
अबला नहीं तुम दुर्गा हो, अपनी ताकत सबको दिखा दो तुम
आंसुओं से युद्ध नहीं जीते जाते द्रौपदी ! अब तो होश में आओ तुम
अपने अस्तित्व के खातिर उठो, समय की गर्त में न खो जाओ तुम
मदन शर्माजी! बहुत बहुत शुक्रिया आपने कितनी मेहनत करके ज्ञानवर्धक सामग्री प्रस्तुत की धन्यवाद्
ReplyDeleteमदन शर्माजी! बहुत बहुत शुक्रिया आपने कितनी मेहनत करके ज्ञानवर्धक सामग्री प्रस्तुत की धन्यवाद्
ReplyDeleteojpurn aahwaan
ReplyDeleteआंसुओं से युद्ध नहीं जीते जाते द्रौपदी !
ReplyDeleteअब तो होश में आओ तुम
............
नारी की चली आ रही दशा पर लिखी गयी एक अत्यंत सुन्दर कविता पढने को मिली..
आभार
बहुत सुन्दर ओजपूर्ण , भाव पूर्ण व प्रेरक उद्बोधन.
ReplyDeleteआत्मस्वाभिमान की रक्षा करने के लिए व न्याय के लिए संघर्ष करना ही धर्म है.आत्म स्वावलंबी होकर जीवन जीना प्रत्येक स्त्री को सीखना होगा.
आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए दिल से आभार.
बेहद सुन्दर भाव पूर्ण
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... शक्ति का संचार करता आव्हान ....
ReplyDeleteबहुत प्रेरक व शानदार प्रस्तुति । बधाईयां...
ReplyDeleteआदरणीय मदन शर्मा जी
ReplyDeleteप्रणाम
आपके लेख से अच्छी जानकारी मिली और ये दया भाव यूँ ही बना रहे। बहुत अच्छे भाव हैं!
आपका आभार
ReplyDeleteबहुत प्रेरक ओर सुंदर प्रस्तुति!!
ReplyDeleteसार्थक रचना!
ReplyDeleteज़बरदस्त ललकार आपकी कविता में देख कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteअबला नहीं तुम दुर्गा हो,
ReplyDeleteअपनी ताकत सबको दिखा दो तुम
आंसुओं से युद्ध नहीं जीते जाते द्रौपदी !
अब तो होश में आओ तुम
नारी शक्ति को व्याख्यायित करती सशक्त कविता।
अपने अस्तित्व के खातिर उठो,
ReplyDeleteसमय की गर्त में न खो जाओ तुम
बहुत सार्थक कविता है आपकी.
सादर
सार्थक आवाहन है मदन भैया....
ReplyDeleteसादर आभार.....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुती ! बधाई!
ReplyDeleteमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
शुभकामनायें ......स्वागत है मेरे ब्लॉग पर !
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ReplyDeleteआदरणीय मदन जी नमस्ते! आपने बहुत सुन्दर लिखा है सर !यही आज हम नारिओं की सच्चाई है.
ReplyDeleteअपनी दुर्दशा के लिए खुद हम नारियां ही दोषी है.
आज तो ये हालत है की यदि कोई लड़की शिक्षा के क्षेत्र में
आगे बढ़ने की कोशिश करती भी है तो उसे हमारी महिलाओं के
द्वारा ही हतोत्साहित किया जाता है.
यदि आप अधिक बोलते हैं तो तुरंत पड़ोस की महिलाओं में कानाफूसी शुरू हो जाता है
और हमसे कहा जाता है की तुम लड़की हो लड़की की तरह रहो
वाह मदन जी क्या ललकार भरी हुंकार भरी है आपने
ReplyDeleteआपने तो रग -रग में जोश भर दिया
हम सैनिक वीर दयानंद के दुनिया में धूम मचा देंगे!
ReplyDeleteआपने बहुत ही प्रभावित किया है
आपका आभार .
Madan ji aapne bahut achchi kavita likhi hai.jisko padhkar kisi ko bhi josh aa jaye.kavita vahi hai jo seedhe dil me utar jaaye.naari me chhipi shakti ko pahchanne ke liye bahut aabhar.
ReplyDeleteachcha lagta hai jab koi purush mahilaon ke utthan ki baat karta hai.har sadi me kuch aap jaise log hue hain jinhone naari marm ko samjha .Aabhar evam shubhkamnayein
ReplyDeleteद्रोपदी के माध्यम से नारी को जागृत करती ओज पूर्ण रचना ...
ReplyDeletevery nice post
ReplyDeletevery nice post
ReplyDeletevery nice post
ReplyDeletevery nice post
ReplyDelete"पांसों के इस क्रूर खेल में
ReplyDeleteशकुनी ने जब भी चौसर बिछाया है
तब-तब युधिष्ठिर ने आगे आकर
तुम्हें ही दांव पर लगाया है "
...................................समय की पुकार को बहुत ही सार्थक शब्द मिला है
..................................अंतस तक झकझोर देनेवाली ...जागरण सन्देश देती रचना
बहुत सुन्दर आह्वान । स्त्रियों को स्वयं ही रक्षा करनी होगी अपने अस्तित्व की और अपने आत्म सम्मान की , वरना लूटने वाले दानव तो चहुँ ओर तांडव कर रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आह्वान.
ReplyDeleteमदन जी ,आप की कलम यूं ही लिखती रहे.
आभार.
आदरणीय मदन शर्मा जी
ReplyDeleteप्रणाम
आपके लेख से अच्छी जानकारी मिली
आदरणीय मदन शर्मा जी....बहुत ही सुन्दर आह्वान
ReplyDeletesir
ReplyDeletesarvpratham aapko hardik dhanyvaad jo aapne mere blog ko padkar aur apna bahumulya samarthan dekar mujhe kritarth kiya hai .bahut bahut dhanyvaad
maine aapki puri profile padhi .sach aapka likh hua ek ek shabd man me bas gaya aur antim panktio इरादे नेक हों और हौसले बुलन्द हों तो मंजिलें आसान हो जाती हैंne to bahut hi utsaah badhya hai---
aapki rachna bahut hi sashakt baehad prabhav shali aur preranadayak hai .aapne naari ke astitv aur uske anginat rupon ko bahut hi achhi tarah se mahsus karke likha hai .
kisi ke bhi antarman ko jhakjhor dene wali is behatreen prastuti ke liye aapki lekhani ko bahut bahut naman
hardik badhai
poonam
बिल्कुल सही कहा आपने। आज के समय मेँ द्रौपदी को खुद ही ललकार लगानी पड़ेगी..
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने। आज के समय मेँ द्रौपदी को खुद ही ललकार लगानी पड़ेगी..
ReplyDeleteनारी शक्ति के लिए सशक्त आह्वाहन !
ReplyDeleteआंसुओं से युद्ध नहीं जीते जाते द्रौपदी !
ReplyDeleteअब तो होश में आओ तुम
............
नारी की चली आ रही दशा पर लिखी गयी एक अत्यंत सुन्दर कविता पढने को मिली..
आभार
तुम्ही इलेक्ट्रान प्रोटान न्यूट्रान, तुम्हे परमाणु भार हम समझते हैं
ReplyDeleteतुम्ही आइसोटोप और आइसोबार, तुम्हे ज्वार वार हम समझते हैं
तुम्ही हो शक्ति तुम्ही हो दुर्गा, काली बन कर करो नर्तन
हो जाने दो आज प्रलय तुम, उठ कर हुंकार करो भीषण
Bahut hi sunder aur prernadayak panktiyan!
ओजपूर्ण , भाव पूर्ण... जागरण का सन्देश देती रचना.....
ReplyDeleteअलख जगाती सुन्दर रचना
ReplyDeleteनारी को आगे बढ़ाने का एक खुबसूरत प्रयास |
ReplyDeleteउत्साहवर्धक रचना |
आंसुओं से युद्ध नहीं जीते जाते द्रौपदी ! अब तो होश में आओ तुम
ReplyDeleteअपने अस्तित्व के खातिर उठो, समय की गर्त में न खो जाओ तुम
....bahut saarthak jaagrukta bhari prastuti
आदरणीय मदन जी नमस्कार द्रौपदी से उठने का -जोश से खुद को सम्हालने का और आतताइयों को सबक सिखाने का जो आह्वान आप ने किया वह काबिले तारीफ हैं -बहुत सुन्दर रचना -हर पंक्ति अपने में लाजबाब -निम्न पंक्तियाँ बहुत भायी
ReplyDeleteतुम कहीं दीप कहीं ज्वाला हो, तुम प्रेमचन्द निराला हो
तुम्ही से भारत का विकास, तुम रत्नजटित एक माला हो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
shandar. iske liye tarif ka har shabad chhota hai. mere blog par aakar mera utsah badhane ke liye shukriya.
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ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने। आज के समय मेँ द्रौपदी को खुद ही ललकार लगानी पड़ेगी.
ReplyDeleteआदरणीय मदन जी नमस्कार
ReplyDeleteयही हौसला आगे भी जारी रखिये
सुन्दर भाव पूर्ण ...
ReplyDeleteसुंदर लेख, जबरदस्त मेहनत,
ReplyDeleteहर बार छला गया तुम्हे द्रौपदी, उठो अब खुद को पहचानो
ReplyDeleteक्या फर्क पड़ता है नामों से, सीता आहिल्या हो या शाहबानो....
बहुत सच कहा है..बहुत सार्थक सोच..एक एतिहासिक कटु सत्य का बहुत सुन्दर चित्रण..बहुत ओजपूर्ण और प्रेरक रचना..आभार
नहीं द्रौपदी नहीं ! …… मत करना इसका गुमान
ReplyDeleteनहीं बचाने आएगा आज, कृष्ण भी बनकर भगवान्
रणचंडी बन वार करो, दू:शासन को सबक सिखाने को
मत सोचो अब कोई मसीहा, आयेगा तुम्हे बचाने को
bahut badhiya ,naari ko vishwaas jagana hai aas nahi lagana hai yahi samjha rahi hai aapki rachna
बहुत प्रेरक व शानदार प्रस्तुति, बधाईयां..
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ReplyDeleteBahut hi umda satya kaha jee aapne.... Bahut sundar.... Madan jee aapka sahyog mujhe shakti deta hai.. Dhanywad
ReplyDeleteटिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteआपके नए पोस्ट का इंतज़ार है!
मदन जी, आपकी रचना तो काल-विजयी है . एक-एक शब्द से प्राण प्रवाहित हो रहा है फिर नारी कैसे नहीं जागेगी .आपके आह्वाहन को कोटि-कोटि नमन
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर कविता
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत शानदार प्रस्तुति,
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |
सशक्त आह्वान
ReplyDeleteआंसुओं से युद्ध नहीं जीते जाते द्रौपदी !-sateek bat .sarthak abhivyakti .badhai .
ReplyDeleteI have given your blog's link on my blog ''ye blog achchha laga ''.My blog's URL is ''http://yeblogachchhalaga.blogspot.com''
ReplyDeleteअबला नहीं तुम दुर्गा हो, अपनी ताकत सबको दिखा दो तुम
ReplyDeletebahut shaktivan urjamay prastuti.aabhar.
आंसुओं से युद्ध नहीं जीते जाते द्रौपदी ! अब तो होश में आओ तुम
ReplyDeleteअपने अस्तित्व के खातिर उठो, समय की गर्त में न खो जाओ तुम.kya baat hai bahut hi achcha likha aapne.main phali baar aapke blog main aai hoon .bahut hi achcha laga.bahut sunder aur saarthak lekh likha aapne aurat ko hamare samaaj main abhi bhi bahut saari samasyaon se jujhnaa padataa hai.maine apni post "äurat hi aurat ki dushman"main naari ke baare main likha hai samay mile to jarur padhiyegaa.itane achche lekh ke liye bahut badhaai aapko.aabhaar
Bahut hi umda satya kaha jee aapne.... Bahut sundar.... Madan jee aapka sahyog mujhe shakti deta hai.. Dhanywad
ReplyDeleteमदन जी आप वन्दनीय हैं महर्षि दयानंद जी के भी यही विचार नारी के सम्बन्ध में थे और इसी लिए उन्होंने नारी सिक्षा के पक्ष में कट्टर हिन्दुओं से विरोध भी जताया था !
ReplyDeleteनहीं द्रौपदी नहीं ! …… मत करना इसका गुमान
ReplyDeleteनहीं बचाने आएगा आज, कृष्ण भी बनकर भगवान्
रणचंडी बन वार करो, दू:शासन को सबक सिखाने को
मत सोचो अब कोई मसीहा, आयेगा तुम्हे बचाने को
मदन जी, आपकी रचना तो काल-विजयी है . एक-एक शब्द से प्राण प्रवाहित हो रहा है फिर नारी कैसे नहीं जागेगी .आपके आह्वाहन को कोटि-कोटि नमन
अंतस तक झकझोर देनेवाली ...जागरण सन्देश देती रचना
ReplyDeleteकवितायें तो असंख्य लोग लिखते हैं परन्तु, आप जैसी कृति दुर्लभ है आज के समय में और वह भी हिन्दी ब्लॉग जगत में...
ReplyDeleteआपकी कविता में व्यापक संदेश निहित है। इसमें जो भावाभिव्यक्ति हुई है उससे सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में व्याप्त विरोधाभास रेखांकित हुए हैं। यह इस रचना की सार्थकता है। पाठक के चिंतन को झकझोरने वाली रचना के लिए साधुवाद!
ReplyDeleteबहुत प्रेरक व शानदार प्रस्तुति, बधाईयां..
ReplyDeleteतुम्ही इलेक्ट्रान प्रोटान न्यूट्रान, तुम्हे परमाणु भार हम समझते हैं
ReplyDeleteतुम्ही आइसोटोप और आइसोबार, तुम्हे ज्वार वार हम समझते हैं
एकदम नई approach. क्या बात है.
द्रौपदी कलयुग में और कृष्ण से अपेक्षा.
ReplyDeleteकविता में रसायनों का मिश्रण अदभुत लगा. सच्चाई का आइना है ये प्रस्तुति. बधाई स्वीकारें.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुती ! बधाई!
ReplyDeleteटुकड़ों पर पला द्रोण ? इनकी आशा करना व्यर्थ है
ReplyDeleteअपने भी काम ना आयेंगे, यदि तू स्वयं असमर्थ है
हर बार छला गया तुम्हे द्रौपदी, उठो अब खुद को पहचानो
क्या फर्क पड़ता है नामों से, सीता आहिल्या हो या शाहबानो
तुम सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु हो, पुरुषों के अहम् का शिकार
वो लालायित हैं नग्न सौन्दर्य के किसने कब सुनी तेरी पुकार
बेहद संजीदगी भरी रचना है आपकी -- दिल के बहुत करीब लगती है .
साधुवाद!
काल को परास्त करती रचना ,
ReplyDeleteबन रन चंडी पहनो रुण्ड मुंड की माला ,बनो सुनामी ....
कर दो काय कल्प समय का ,करो सवारी समय की ,
हो समय पे सवार करो भैरोंजी पे वार .
बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत प्रेरक व शानदार प्रस्तुति...
ReplyDeleteलाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार...
ReplyDeleteMadan ji .. bahut sarthak aur bahut sasakt likha hai aapne... aapne mere blog me apne vicharon se hausla diya Aapka aabhaar ..
ReplyDeletemera Blog Amritras hai. aap is blog mar bhi apne vichron se sahyog dengeN..
ReplyDeleteaapne bahut sarthak likha hai .....
ReplyDelete.. जी वाकई बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना।
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ReplyDeleteआपकी सकारात्मक सोच व उसकी इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति ने दिल को छू लिया |एक-एक शब्द से प्राण प्रवाहित हो रहा है फिर नारी कैसे नहीं जागेगी .आपके आह्वाहन को कोटि-कोटि नमन बहुत-बहुत बधाई |
ReplyDeletekafi achhi soch, achhi abhivyakti...
ReplyDeleteNari hi hai poojita...nari hi mein shakti...
badhayee.
वीरांगनाओं की ज़रूरत है दुनिया को.. महिला समाज को प्रेरित और उत्साहित करती यह कृति सच्चाई को भी बयां करती है...
ReplyDeleteआदरणीय मदन भ्राता जी अभिवादन -सुन्दर और प्यारी रचना - सुन्दर -अच्छी जानकारी - सुख दायक -जोरदार पुरजोर विरोध ऐसे हो तो मजा आ जाए दुनिया बच जाये
ReplyDeleteआभार
शुक्ल भ्रमर ५
नग्न करने को जो हाथ बढे, उस हाथ को जड़ से उड़ा दो तुम
अबला नहीं तुम दुर्गा हो, अपनी ताकत सबको दिखा दो तुम