Wednesday, January 25, 2012


तन्तुं तन्वन्रजसो भानुमन्विहि ज्योतिष्मतः पथो रक्ष धिया कृतान्
अनुल्वणं वयत जोगुवामपो मनुर्भव जनया दैव्यं जनम् (ऋग्वेद 10.53.6)


अर्थात्मनुष्य की योनि-आकृति पाने वाले हे मानव! संसार का ताना-बाना बुनते हुए तू प्रकाश का अनुसरण कर। बुद्धिमानों द्वारा निर्दिष्ट ज्योतिर्मय मार्गों की रक्षा कर। निरन्तर ज्ञान एवं कर्म का अनुष्ठान करने वाले उलझन रहित आचरण का विस्तार कर। मनुष्य बन और दिव्य मानवता का प्रकाशन कर तथा दिव्य सन्तानों को जन्म दे। 

बंद करो ये भ्रष्टाचार
मै पूछता हूँ खुद से ना जाने कई बार  
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 
नेताओं की देखो धूम मची है 
हो रहे हैं कैसे मालामाल  
सत्य की राह पे चलने वाला 
आज हो चला है कंगाल 
देश की सीमा का प्रहरी 
कर रहा है यही पुकार
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 
हर प्रान्त की है भाषा अलग 
फिर भी एक तिरंगा है 
आज भी हिन्दू मुस्लिम में 
हो रहा क्यों दंगा है 
इंसानियत भी बिक रही है देखो
खुले आम बीच बाजार 
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार
कुछ तो सोचो कुछ तो समझो 
क्यों बिक रही ये ईमानदारी 
औरो को सजा देते हुवे
गम हुई कहाँ अकल तुम्हारी 
कुछ ही पैसों की खातिर क्यों 
बिकती है ये ईमानदारी 
अब तो जी घबराता है 
क्यों कर बने हम ईमानदार 
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 
कभी तो आइना जागेगा
कभी तो तस्वीर होगी साफ़
जो बोएगा वही काटेगा
कभी तो राज करेगा इन्साफ
कभी तो आत्मा कचोटेगी तेरी
कभी तो बजेगा मन का सितार 
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 

17 comments:

  1. कभी तो तस्वीर होगी साफ़
    जो बोएगा वही काटेगा
    कभी तो राज करेगा इन्साफ
    कभी तो आत्मा कचोटेगी तेरी
    कभी तो बजेगा मन का सितार ... awashya

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  2. आज समय की यही आवश्यकता है . हम आशावादी लोग हैं कभी न कभी तो ये होगा ही . आपके जज्बे को सलाम .

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  3. वाह जी बहुत अच्छी बात कह दी आप ने, बहुत सुंदर विचार

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  4. क्यों बिक रही ये ईमानदारी
    औरो को सजा देते हुवे
    गम हुई कहाँ अकल तुम्हारी
    कुछ ही पैसों की खातिर क्यों
    बिकती है ये ईमानदारी
    आप ने एक सच्चाई बयान की है !

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  5. बहुत सुंदर विचार, धन्यवाद|

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  6. aapke vicharo ne nai raah dikhai ,bilkul sach ha..

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  7. बेहतरीन प्रस्तुति !

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  8. आपकी रचनाओं के बारे में कुछ भी कहना बहुत मुश्किल होता है..निशब्द कर दिया आपकी इस रचना ने

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  9. शिक्षाप्रद प्रस्तुति के लिए आभार.

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  10. देश में फैली अव्यवस्था से दुःख होता है. सभी क्षेत्रो में अव्यवस्था है. इसमें सुधार लाने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए.

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  11. देश की वर्तमान परिस्थिति का बढि़या चित्रण।
    यथार्थ है।

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  12. बहुत सुन्दर विचार, बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    आपका सवाई सिंह राजपुरोहित
    एक ब्लॉग सबका

    आज का आगरा

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  13. मन को कचोटती हुई आपकी यह प्रस्तुति प्रसंसनीय है.
    तीखे कटाक्ष और मार्मिक प्रश्न किए हैं आपने.

    काश! भ्रष्टाचार समाप्त हो, शिष्टाचार का अवलंबन
    कर पाते हम सब.

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