तन्तुं तन्वन् रजसो भानुमन्विहि ज्योतिष्मतः पथो रक्ष धिया कृतान्।
अनुल्वणं वयत जोगुवामपो मनुर्भव जनया दैव्यं जनम्॥ (ऋग्वेद 10.53.6)
अर्थात् मनुष्य की योनि-आकृति पाने वाले हे मानव! संसार का ताना-बाना बुनते हुए तू प्रकाश का अनुसरण कर। बुद्धिमानों द्वारा निर्दिष्ट ज्योतिर्मय मार्गों की रक्षा कर। निरन्तर ज्ञान एवं कर्म का अनुष्ठान करने वाले उलझन रहित आचरण का विस्तार कर। मनुष्य बन और दिव्य मानवता का प्रकाशन कर तथा दिव्य सन्तानों को जन्म दे।
बंद करो ये भ्रष्टाचार
मै पूछता हूँ खुद से ना जाने कई बार
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार
नेताओं की देखो धूम मची है
हो रहे हैं कैसे मालामाल
सत्य की राह पे चलने वाला
आज हो चला है कंगाल
देश की सीमा का प्रहरी
कर रहा है यही पुकार
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार
हर प्रान्त की है भाषा अलग
फिर भी एक तिरंगा है
आज भी हिन्दू मुस्लिम में
हो रहा क्यों दंगा है
इंसानियत भी बिक रही है देखो
खुले आम बीच बाजार
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार
कुछ तो सोचो कुछ तो समझो
क्यों बिक रही ये ईमानदारी
औरो को सजा देते हुवे
गम हुई कहाँ अकल तुम्हारी
कुछ ही पैसों की खातिर क्यों
बिकती है ये ईमानदारी
अब तो जी घबराता है
क्यों कर बने हम ईमानदार
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार
कभी तो आइना जागेगा
कभी तो तस्वीर होगी साफ़
जो बोएगा वही काटेगा
कभी तो राज करेगा इन्साफ
कभी तो आत्मा कचोटेगी तेरी
कभी तो बजेगा मन का सितार
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार
कभी तो तस्वीर होगी साफ़
ReplyDeleteजो बोएगा वही काटेगा
कभी तो राज करेगा इन्साफ
कभी तो आत्मा कचोटेगी तेरी
कभी तो बजेगा मन का सितार ... awashya
आज समय की यही आवश्यकता है . हम आशावादी लोग हैं कभी न कभी तो ये होगा ही . आपके जज्बे को सलाम .
ReplyDeleteवाह जी बहुत अच्छी बात कह दी आप ने, बहुत सुंदर विचार
ReplyDeleteक्यों बिक रही ये ईमानदारी
ReplyDeleteऔरो को सजा देते हुवे
गम हुई कहाँ अकल तुम्हारी
कुछ ही पैसों की खातिर क्यों
बिकती है ये ईमानदारी
आप ने एक सच्चाई बयान की है !
बहुत सुंदर विचार, धन्यवाद|
ReplyDeleteaapke vicharo ne nai raah dikhai ,bilkul sach ha..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteआपकी रचनाओं के बारे में कुछ भी कहना बहुत मुश्किल होता है..निशब्द कर दिया आपकी इस रचना ने
ReplyDeleteSunder Saarthak Vichar...
ReplyDeletebahut badhiya .....aabhar
ReplyDeleteशिक्षाप्रद प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteaapke vicharo se 100% sehmat hu.
ReplyDeleteदेश में फैली अव्यवस्था से दुःख होता है. सभी क्षेत्रो में अव्यवस्था है. इसमें सुधार लाने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए.
ReplyDeletenice post!
ReplyDeleteदेश की वर्तमान परिस्थिति का बढि़या चित्रण।
ReplyDeleteयथार्थ है।
बहुत सुन्दर विचार, बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका सवाई सिंह राजपुरोहित
एक ब्लॉग सबका
आज का आगरा
मन को कचोटती हुई आपकी यह प्रस्तुति प्रसंसनीय है.
ReplyDeleteतीखे कटाक्ष और मार्मिक प्रश्न किए हैं आपने.
काश! भ्रष्टाचार समाप्त हो, शिष्टाचार का अवलंबन
कर पाते हम सब.