जिसे आँख से नहीं देखा जाता अपितु जिससे आँख देखती है तू उसी को ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर और जो उससे भिन्न सूर्य,विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ हैं उनकी उपासना मत कर |
-------- महर्षि दयानंद सरस्वती (सत्यार्थप्रकाश)
वेदों का ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए है। वेदों में गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर समाज को चार वर्णो में बांटा गया है। जिस तरह से शरीर के सभी अंगों की उपयोगिता है, उसी तरह से समाज रूपी शरीर के ये चारों अंग अपने आप में उपयोगी और पूरक हैं। वेदों की सबसे बडी विशेषता यह है, इसकी वाणी आम बोल-चाल की भाषा कभी नहीं रही, इसलिए इसमें कोई क्षेपक नहीं हो सकती। वेदों में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष प्राप्त करने के ज्ञान के अलावा समाज, विज्ञान, साहित्य, गृह निर्माण, उद्योग-धंधे, चिकित्सा, औषधि, गणित, शासन, सैन्य, सुरक्षा, शिक्षा, भाषा विज्ञान, भूतत्व,अग्नि, विमान, जल, वायु, वृष्टि, यजन और याज्ञिक पर्जन्य सहित अनगिनत तरह की विद्याएं दी गई हैं। वेदों की जो सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है, वह है इसका रहस्यवाद। परमात्मा के बारे में जिस तरह से एकमत होकर कुछ नहीं कहा जा सकता है, उसी तरह परमात्मा की वाणी होने की वजह से इसका कोई एक अर्थ नहीं निरूपित किया जा सकता है। इसलिए आज तक जितने भाष्यकारहुए हैं सबने इनके अलग-अलग अर्थ किए हैं, और सृष्टि में आगे भी वेदों के बारे में कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वेद मंत्रों के बस यही अर्थ होंगे। एक बात जो सबसे अधिक ध्यान देने की है वेदों में जो लोग आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ढूंढते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि वेदों की रचना महज किसी विशेष काल खण्ड को ध्यान में रख कर नहीं हुई, बल्कि जब तक यह सृष्टि चलती रहेगी तब तक वेद ज्ञान उपयोगी और ज्ञान-विज्ञान के सूत्र बताते रहेंगे। दरअसल वेद के मंत्रों में जो ज्ञान दिया गया है वह मनुष्य के विभिन्न आवश्यकताओं और उपयोगिताओंको ध्यान में रखकर दिया गया है। वेद के बारे में अक्सर यह सवाल उठाया जाता है कि आज जबकि मनुष्य ज्ञान-विज्ञान के बारे में काफी ऊंचाई तय कर चुका है, ऐसे में वेद किस तरह उपयोगी हैं? इसका एक सहज जवाब है-वेदों में जो जीवन के सूत्र हैं दुनिया के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं। वेदों में जो मानवीय मूल्य हैं विश्व के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं। ये दो बातें ही दुनिया के किसी भी पुस्तक के बडे से बडे ज्ञान से भारी हैं। -------------साभार अखिलेश आर्येदु |
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteनूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.
बहुत सुन्दर जानकारी मिली आपकी इस पोस्ट के माध्यम से.
ReplyDeleteवेदों का एक एक शब्द गहन अनुसंधान कराने की सामर्थ्य
रखता है.जो जीवन को सर्वोच्च ऊंचाई तक ले जा सकता है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
नववर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
सार्थक प्रस्तुति ..हर पल ज्योतिर्मय हो
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपका एक और बेहतरीन लेख. ...... आभार
ReplyDeleteबधाई के पात्र हैं आप इस पोस्ट के लिए ..
ReplyDeleteआपको को नया साल २०१२
मुबारक हो !!
आपकी रचना इसकी सार्थकता को दर्शाती है .....आपका आभार
ReplyDeleteनए को पाने की चाहत में न हमें भूल जाना तुम |
मैं गया वक्त नहीं जो पलट कर फिर न आऊंगी |
नए साल की शुभकामनायें
आपको पढ़ना और आपके ब्लॉग पर आना अच्छा लगा.
ReplyDeleteआपको को नया साल २०१२ की शुभकामनायें..
अज्ञानता और पाखंड को दूर करने में स्वामी दयानंद का योगदान अतुलनीय है।वेदों में जो मानवीय मूल्य हैं विश्व के और किसी भी पुस्तक में नहीं हैं।
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट के लिए आभार!!
बहुत अच्छा लेख ...
ReplyDeleteआपके द्वारा दी गई जानकारी काफ़ी हद तक उपयोगी है में इससे पूरी तरह सहमत हू
ReplyDeleteसुंदर विचार,
ReplyDeleteप्रेरक आलेख।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
अच्छे विचार वेद का ज्ञान सर्वश्रेष्ठ है ये बात पूरी तरह सही है |
ReplyDeleteवेदों के सन्देश से अनभिज्ञ होने के कारण आज ऐसा दुष्प्रचार मीडिया में फैला है की वेदों में इतिहास है | आपने इस भ्रम को दूर किया है
ReplyDeleteआभार .
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteआपका सभी आलेख गहन विश्लेषणात्मक है|बहुत सुंदर विचार, धन्यवाद|
ReplyDeleteशर्मा जी, आप तो एक जबरदस्त जानकारी ले कर आये हैं... आपका बहुत बहुत शुक्रिया.... कृपया आगे भी जारी रखियेगा!!!
ReplyDeleteved ke baare me to mujhe adhik jankari nhi hai kintu aapka ye prayas bahut sarahniy hai
ReplyDelete