Sunday, December 18, 2011




सत्यार्थ प्रकाश में जाटजी और पोपजी की कहानी

एक जाट था । उसके घर में एक गाय बहुत अच्छी और बीस सेर दूध देने वाली थी । दूध उसका बड़ा स्वादिष्‍ट होता था । कभी-कभी पोपजी के मुख में भी पड़ता था । उसका पुरोहित यही ध्यान कर रहा था कि जब जाट का बुड्ढ़ा बाप मरने लगेगा तब इसी गाय का संकल्प करा लूंगा ।
कुछ दिन में दैवयोग से उसके बाप का मरण समय आया । जीभ बन्द हो गई और खाट से भूमि पर ले लिया अर्थात् प्राण छोड़ने का समय आ पहुंचा । उस समय जाट के इष्‍ट-मित्र और सम्बन्धी भी उपस्थित हुए थे ।
तब पोपजी ने  पुकारा कि "यजमान ! अब तू इसके हाथ से गोदान करा ।"
जाट १० रुपया निकाल कर पिता के हाथ में रखकर बोला - "पढ़ो संकल्प !"
पोपजी बोला - "वाह-वाह ! क्या बाप बारम्बार मरता है ? इस समय तो साक्षात् गाय को लाओ, जो दूध देती हो, बुड्ढी न हो, सब प्रकार उत्तम हो । ऐसी गौ का दान करना चाहिये ।"

जाटजी - हमारे पास तो एक ही गाय है, उसके बिना हमारे लड़के-बालों का निर्वाह न हो सकेगा इसलिए उसको न दूंगा । लो २० रुपये का संकल्प पढ़ देओ ! और इन रुपयों से दूसरी दुधार गाय ले लेना ।

पोपजी - वाहजी वाह ! तुम अपने बाप से भी गाय को अधिक समझते हो ? क्या अपने बाप को वैतरणी नदी में डुबाकर दु:ख देना चाहते हो । तुम अच्छे सुपुत्र हुए ?
तब तो पोपजी की ओर सब कुटुम्बी हो गये, क्योंकि उन सबको पहिले ही पोपजी ने बहका रक्खा था और उस समय भी इशारा कर दिया । सबने मिलकर हठ से उसी गाय का दान उसी पोपजी को दिला दिया । उस समय जाट कुछ भी न बोला ।
उसका पिता मर गया और पोपजी बछडा सहित गाय और दूध दुहने की बटलोही को ले अपने घर में गाय-बछड़े को बाँध, बटलोही धर पुन: जाट के घर आया और मृतक के साथ श्मशानभूमि में जाकर दाह कर्म कराया । वहाँ भी कुछ-कुछ पोपलीला चलाई ।        
पश्‍चात् दशगात्र सपिण्डी कराने आदि में भी उसको मूंडा । महाब्राह्मणों ने भी लूटा और भुक्खड़ों ने भी बहुत सा माल पेट में भरा अर्थात् जब सब क्रिया हो चुकी तब जाट ने जिस किसी के घर से दूध मांग-मूंग निर्वाह किया । चौदहवें दिन प्रात:-काल पोपजी के घर पहुँचा । देखा तो पोपजी गाय दुह, बटलोई भर, पोपजी की उठने की तैयारी थी .....
इतने में ही जाटजी पहुँचे । उसको देख पोपजी बोला, आइये ! यजमान बैठिये !
जाटजी - तुम भी पुरोहित जी इधर आओ !!
पोपजी - अच्छा दूध धर आऊँ !!
जाटजी - नहीं-नहीं, दूध की बटलोई इधर लाओ !!
पोपजी बिचारे जा बैठे और बटलोई सामने धर दी !!
जाटजी - तुम बड़े झूठे हो !!
पोपजी - क्या झूठ किया ?
जाटजी - कहो, तुमने गाय किसलिए ली थी ?
पोपजी - तुम्हारे पिता के वैतरणी नदी तरने के लिए !!
जाटजी - अच्छा तो तुमने वहाँ वैतरणी के किनारे पर गाय क्यों न पहुँचाई ? हम तो तुम्हारे भरोसे पर रहे और तुम अपने घर बाँध बैठे ! न जाने मेरे बाप ने वैतरणी में कितने गोते खाये होंगे ?
पोपजी - नहीं-नहीं, वहाँ इस दान के पुण्य के प्रभाव से दूसरी गाय बनकर उसको उतार दिया होगा !!
जाटजी - वैतरणी नदी यहाँ से कितनी दूर और किधर की ओर है ?
पोपजी - अनुमान से कोई तीस करोड़ कोश दूर है !! क्योंकि उञ्चास कोटि योजन पृथ्वी है और दक्षिण नैऋत दिशा में वैतरणी नदी है !!
जाटजी - इतनी दूर से तुम्हारी चिट्ठी वा तार का समाचार गया हो, उसका उत्तर आया हो कि वहाँ पुण्य की गाय बन गई, अमुक के पिता को पार उतार दिया, दिखलाओ ?
पोपजी - हमारे पास 'गरुड़पुराण' के लेख के अलावा डाक वा तार की सुचना नहीं है  !!
जाटजी - इस गरुड़पुराण को हम सच्चा कैसे मानें ?
पोपजी - जैसे हम सब मानते हैं !!
जाटजी - यह पुस्तक तुम्हारे पुरखों ने तुम्हारी जीविका के लिए बनाया है ! क्योंकि पिता को अपने पुत्रों से अधिक  कोई प्रिय नहीं ! जब मेरा पिता मेरे पास चिट्ठी-पत्री वा तार भेजेगा तभी मैं वैतरणी नदी के किनारे गाय पहुंचा दूंगा और उनको पार उतार, पुन: गाय को घर में ले आ दूध को मैं और मेरे लड़के-बाले पिया करेंगे, लाओ ! दूध की भरी हुई बटलोही!
गाय, बछड़ा लेकर जाटजी अपने घर को चला !!
पोपजी - तुम दान देकर लेते हो, तुम्हारा सत्यानाश हो जायेगा ।
जाटजी - चुप रहो ! नहीं तो तेरह दिन तक दूध के बिना जितना दु:ख हमने पाया है, वह सारी कसर निकाल दूंगा ! तब पोपजी चुप हो गए  और जाटजी गाय-बछड़ा ले कर वापस अपने घर पहुँचे !
जब ऐसे ही जाटजी के से पुरुष हो जायं तो पोपलीला संसार में न चले !!


16 comments:

  1. अतार्किक धार्मिक कर्मकांडों पर कटाक्ष करती हुए सुन्दर कहानी..व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है जब तक मुझे किसी कर्मकांड का तार्किक प्रमाणिकता आन्तरिक रूप से मनुष्य स्वीकार न कर ले उसे करना व्यर्थ है..

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  2. अंधविश्वास पर अच्छा कटाक्ष है .

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  3. बहुत ही शिक्षाप्रद कहानी सुनाई

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  4. रोचक तरीके से कर्मकांड की पोल खोल दी गयी है इस सुन्दर कहानी में .अच्छी लगी .

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  5. अच्छी कहानी है| आशुतोष जी की बात से सहमत हूँ|
    हर हिन्दू मान्यता के पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है| हालांकि आजकल इसकी आड़ में कुछ गोर्ख धंधे भी चल रहे हैं| वैतरणी नदी को पार करने के लिए मृतक के कर्म ही काम आते हैं पुत्र के नहीं|

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  6. सार्थक कथा ..... कर्मों से बढ़कर कुछ नहीं.....

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  7. प्रेरक प्रसंग....

    'पोप' शब्द का बड़ा ही सार्थक प्रयोग ... नहीं तो ऐसे प्रसंगों में बेवजह पंडित और पुजारियों को बदनामी झेलनी पड़ती है...
    ऎसी पाखंड-खंडनी कथाओं से पोपलीला को उजागर करते रहना होगा... नहीं तो कुछ 'कुप्रयास' संकृति के रक्षकों को अन्धविश्वासी ठहराने में जुटे रहेंगे ...

    मदन जी, साधुवाद इस कथा के लिये.... इसी तरह ऋषि दयानंद के जलाए दीप को जलाए रखना होगा..

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  8. स्वामी जी के तर्क अकाट्य होते थे।
    शिक्षाप्रद और अनुकरणीय कथा।

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  9. बहुत सटीक और शिक्षाप्रद कथा...आभार

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  10. वाह्य आडम्बरों से बचने के प्रति जागरूक करती सार्थक पोस्ट ! आभार मदन जी !

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  11. सार्थक कथा ...आभार

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  12. bahut hi acchi madan ji ,
    prerak kahani
    http://blondmedia.blogspot.com/2011/12/blog-post.html

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  13. बहुत शिक्षाप्रद कहानी आप ने पेश की है हमें इससे सीख लेनी चाहिए आज भी इसकी इसकी जरुरत है दयानंद जी का आभार हमें मानना चाहिए |

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  14. शिक्षाप्रद कहानी ......

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  15. पोप जी की लीला उन्हीं पर चलती है
    जो अपने पर उसको चलने देते हैं.

    जाट ने पहले मजबूरन यकीन करके सगे सम्बन्धियों
    के दबाब में पोप को गाय दे दी.परन्तु जब उसे पोप
    समुचित उत्तर न दे सका(जो कि वह दे भी नही सकता
    था) तो जाट जी महाराज अपनी गाय वापिस ले आये.
    यदि हर व्यक्ति जागरूक रहे और धरम ग्रंथों को ठीक से
    जानने का प्रयास करे तो ठगे जाने की नोबत नही आएगी.

    परुन्तु,क्या करें हर कोई शोर्ट कट चाहता है.

    शिक्षाप्रद प्रस्तुति के लिए आभार.

    इस पोस्ट पर देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.
    पोस्ट के प्रकाशित होने का मुझे पता ही नही चल पाया.

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  16. दयानंद का ध्येय समान धर्म और समान भाषा के अधिष्ठान के आधार पर हिन्दू समाज को पुनर्गठित और सुसंगठित करना था |
    स्वामी जी के तर्क अकाट्य होते थे।

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