Wednesday, September 7, 2011





हमें तो महर्षि स्वामी दयानंद की उपकार मानना चाहिए .उन्होंने ही हिन्दुओं को अपने देश और धर्म के 
प्रति कटिबद्ध होने का आन्दोलन चलाया था.वर्ना हिन्दू ही खुद को हिन्दू कहलाने से लज्जा महसूस करते थेजो भी आता था हिन्दू धर्म पर आरोप लगा देता थाऔर हिन्दू चुप रह जाते थे.जब हिन्दू अपने धर्म ग्रंथो को ठीक से नहीं जानते तो और दूसरों के धर्म ग्रंथों की बात तो दूर रही.  फिर हिन्दू  सटीक जवाब  कैसे दे सकते हैं.
क्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने शुद्र तपस्वी शम्बूक का वध किया था 
 कई बार मैंने विभिन्न पत्रिकाओं में पढ़ा है की राम ने दलित तथा शुद्र होने की वजह से तपस्वी शम्बूक का वध कर दिया और इसी आधार पे आज के हमारे आधुनिकता वादी तथाकथित दलितों के मसीहा श्री राम पर व्यर्थ का दोषारोपण करते हैं और हमारे विश्व हिन्दू परिषद् , आर एस एस,  बजरंग दल के तथाकथित  हिंदूवादी संगठन जाने क्यों इन मुद्दों पर चुप्पी साधे रहते है. इसी तरह के गलत बातों को लेकर लगातार हमारे धार्मिक ग्रंथों पर प्रहार किये जाते है किन्तु ये उन गलत बातों को सुधारने का बिलकुल प्रयत्न नही करते तथा ये लगातार अंध विश्वास का पोषण ही करते अधिक दिखाई पड़ते हैं.
आज वो हमारा धर्म सुधारक संस्था आर्यसमाज भी न जाने कहाँ सो गया है जो पहले कभी सबसे आगे बढ़ के ऐसे लोगों को मुह तोड़ जबाब दिया करता था . 
जिस मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को सारा भारत एक आदर्श मानता है क्या वे ऐसा निंदनीय कार्य कर सकते हैं ?
सबसे पहले हमें ये जानना होगा की ये प्रसंग है कहाँ पर, तो यह प्रसंग भवभूति द्वारा रचित उत्तर रामायण में है तथा इसके तीसरे चरण में शम्बूक वध का उल्लेख है. यह पूरा रामायण काव्य में लिखित है.
ये कथा संक्षेप में इस प्रकार है एक वृद्ध ब्राह्मन अपने पुत्र का शव लेकर राजा श्री राम के पास आया तथा उनसे शिकायत की कि शम्बूक नाम के शुद्र ने अपने तपस्या  के लिए उनके पुत्र का वध कर दिया है. ये सुन कर राम शम्बूक के पास जाते है तथा उसका वध कर देते हैं. जिसके परिणाम स्वरुप शम्बूक एक दिव्य पुरुष में बदल जाता है तथा ब्राह्मन को भी अपना पुत्र प्राप्त हो जाता है.        
अब मेरा प्रश्न है उन तथाकथित आधुनिकता वादिओं से क्या वे अवैज्ञानिक, निराधार चमत्कार, तथा अंधविश्वास को मानते हैं ?
उस काल में शुद्र आदि नाम जाति के आधार पे नही अपितु कर्म के आधार पे संबोधित किये जाते थे. जिस तरह ब्राह्मन पुत्र रावण को राक्षस के रूप में.  अतः यहाँ शम्बूक जाति वाचक संज्ञा नहीं अपितु कर्म है.
 राम शम्बूक के पास जाते है तथा उसका वध कर देते हैं जिसके परिणाम स्वरुप शम्बूक एक दिव्य पुरुष में बदल जाता है.-  इस घटना से ये स्पष्ट होता है की राम ने शम्बूक का वध नही किया अपितु उसके गलत विचारों का वध कर के महान पुरुष बनाया
तथा ब्राह्मन को भी अपना पुत्र प्राप्त हो जाता है.-  अर्थात शम्बूक उस वृद्ध ब्राह्मन को पिता मान कर उसकी सेवा करने लगा.        
इस प्रसंग को यदि हम ध्यान से समझें तो श्री राम ने वही किया जो एक अच्छे राजा को करना चाहिए.
भला इसमें क्या बुरी बात है?
वेदों मेंशूद्रशब्द लगभग बीस बार आया है | कहीं भी उसका अपमानजनक अर्थों में प्रयोग नहीं हुआ है | और वेदों में किसी भी स्थान पर शूद्र के जन्म से अछूत होने ,उन्हें वेदाध्ययन से वंचित रखने, अन्य वर्णों से उनका दर्जा कम होने या उन्हें यज्ञादि से अलग रखने का उल्लेख नहीं है |
अब आप ही सोचें इस प्रसंग से आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे? इस प्रसंग को ब्राह्मन तथा शुद्र का प्रसंग बता के जातिवाद का राजनीती करने वाले या तो महामुर्ख हैं या पुर्णतः देशद्रोही जो गलत बात फैला कर समाज में विघटन का प्रयास करते हैं
तथा ऐसे लोगो की वजह से धर्मान्तरण करने वाली विभिन्न संस्थाएं ऐसे निराधार विचारों को चासनी लगा कर दलितों के आगे परोसती हैं तथा व्यापक स्तर पर धर्म परिवर्तन का कार्य करती हैं .
भारत में ईसाई मत के प्रचार के लिए जिस एक हथियार का जमकर प्रयोग किया गया वह है जाति व्यवस्था में व्याप्त जड़ता.
इसी जड़ता को तोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर धर्मांतरण अभियान चलाए गये. ईसा और ईसाइयत को मुक्ति मार्ग बताकर गांव-गिरांव और आदिवासी इलाकों में चर्च संगठन जमकर धर्मांतरण करवा रहे हैं.
  

22 comments:

  1. फिर दिया अवसर आतंकियों ने हम भारतीयों को संवेदनाएं प्रकट करने/कराने का...
    एक और आतंकी हमले को दिया अंजाम...
    दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर धमाका...
    अब बयान बाजी शुरू होगी-
    प्रधानमंत्री ...... हम आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देंगे ...
    दिग्गी ...... इस में आर एस एस का हाथ हो सकता है
    चिदम्बरम ..... ऐसे छोटे मोटे धमाके होते रहते है..
    राहुल बाबा ..... हर धमाके को रोका नही जा सकता...
    आपको पता है कि दिल्ली पुलिस कहाँ थी?
    अन्ना, बाबा रामदेव, केजरीवाल को नीचा दिखाने में ?

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  2. सार्थक आलेख आँखें खोलने में सक्षम ...

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  3. तुलसी दासजी का तो कहना है की पुजिये विप्र ज्ञान गुण हीना ,शुद्र न पुजिया ज्ञान प्रवीना ...और ढोल गावर शूद्र (यानि शC /श्ट /ओBC) पशु नारी यह सब ताडन के अधिकारी....
    इस तरह के लोगों ने ही हमारे समाज को और विघटित किया है ,
    दयानंद सरस्वती को पुराणों की निंदा करने के अपराध में जहर देकर मार डाला गया यही तो है हमारा हिन्दू धर्म !!!

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  4. बिलकुल सही कहा आपने..
    बहुत अच्छे विचार, धन्यवाद आपको..

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  5. बहुत सुंदर चिंतन ...आध्यात्मिक विचारों से साथ प्रासंगिक सच की प्रस्तुति....

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  6. आपने बहुत अच्छे विचार रखे हैं
    सुंदर और भक्तिमय आलेख आपको भी बधाई .

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  7. महर्षि दयानंद जी ने इस दिशा में बहुत कोशिश भी की थी. आप बहुत ही परोपकार का काम कर रहे हैं
    आपने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है . जितनी भी तारीफ की जाय कम ही होगा ....
    बहुत आभार!

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  8. achha laga
    kam se kam ek sahi arth to malom hua
    thanks

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  9. आदरणीय मदन जी
    नमस्कार !
    आपने सत्य लिखा है
    आपके द्वारा दी गई जानकारी काफ़ी हद तक उपयोगी है में इससे पूरी तरह सहमत हू.

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  10. बहुत अच्छे विचार
    सुंदर और भक्तिमय आलेख आपको भी बधाई

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  11. तुलसी ने अपने युग की मान्यताओं को वाणी दी है.वह पराभव का काल था और तुलसी का सोच अति परंपरावादी .बल्कि वाल्मीकि रामायण में जिस खुली दृष्टि का परिचय मिलता है तुलसी में उसका अभाव है .बहुत सी उनकी अपनी उद्भावनाये हैं -अहल्या को राम से चरण-स्पर्श कराना ,लक्ष्मण रेखा ,सीता का दैन्य , नारी के प्रति दृष्टिकोण .अति मर्यादाशीलता आदि .
    और लोगों ने उस सब को आदर्श मान लिया .
    राम के चरित्र की युगानुरूप निदर्शन होना चाहिये .

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  12. सुन्दर विषय और सुन्दर व्याख्य ! सभी को इस विभिन्नता को दूर करनी ही चाहिए !

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  13. पौराणिक कथाओं को आज के संदर्भ से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
    विचारणीय आलेख।

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  14. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुती!

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  15. सुन्दर,सार्थक विचारोत्तेजक विश्लेशण.
    आपके ब्लॉग पर देरी से आना हुआ.इसके लिए
    क्षमा चाहता हूँ.दरअसल सही सोच की कमी होना
    और सही जानकारी का ना होना ही समस्या की जड़ है.
    जाति का वर्गीकरण हमारे समाज में,गुण,कर्म
    और स्वाभाव से ही हुआ है,जन्म से नहीं.
    वध का अर्थ केवल शारीरिक वध नहीं होता.
    आसुरी व क्षुद्र विचारधारा को समाप्त करना
    वैचारिक वध है.आपका लेख गहरे भाव अभिव्यक्त करता है.
    आभार.

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  16. सिर्फ जय श्री राम कहने से कोई उनका सच्चा भक्त नहीं हो जाता। उसके लिए उनके आदर्शों पर भी चलना होता है, उन्हें अपने जीवन में उतारना होता है।
    बहुत सुंदर चिंतन ...आध्यात्मिक विचारों से साथ प्रासंगिक सच की प्रस्तुति...

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  17. बहुत सुंदर चिंतन ...आध्यात्मिक विचारों से साथ प्रासंगिक सच की प्रस्तुति...

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  18. बहुत बढ़िया आलेख.
    हिन्दू धर्म में बहुत सी बातें ऐसी हैं जिस पर आज के समय के अनुसार विचार करना जरूरी है.
    आपका प्रयास सार्थक है.आभार.

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  19. मदन शर्मा जी,
    नमस्कार,
    आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

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  20. सुंदर और भक्तिमय आलेख .

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