यथेमाम वाचं कल्याणीमावदानी जनेभ्यः | ब्रह्मराजान्याभ्याम शूद्रायचार्याय च स्वाय चारणायच |
यजुर्वेद (२६ -२ )
अर्थात परमेश्वर कहता है की
जैसे मै अपनी कल्याणकारी वेद वाणी का मनुष्य मात्र के लिए उपदेश करता हूँ वैसे ही तुम भी किया करो | मैंने ब्राह्मणों, क्षत्रियो, वैश्यों, शूद्रों तथा अतिशूद्रों आदि सभी के लिए वेदों का प्रकाश किया है |
स्त्री शुद्रो ना धीयताम
पृथिवी आदि के उपभोग के सामान ही वेदों के अध्ययन में भी मनुष्य मात्र का अधिकार है | जैसे द्विज आदि वैसे ही शुद्र भी भगवान् की उत्पादित प्रजा है | पृथिवी, जल, वायु, अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा, औषधि, वनस्पति, अन्नादि सृष्टि में जितने भी पदार्थ हैं उनके उपभोग का अधिकार सबको सामान रूप से प्राप्त है | इसी प्रकार ईश्वर के दिए ज्ञान वेद का अध्ययन कर उसी के अनुसार आचरण करने का अधिकार भी मनुष्य मात्र को है | ईश्वर की सृष्टि में सभी प्राणी बराबर हैं | ईश्वरीय विधान में सबको बुद्धि के अनुसार अवसर की समानता प्राप्त है | उसका लाभ उठाना प्रत्येक जीव के अपने अपने सामर्थ्य पर निर्भर है |
अतः वेद रूपी ईश्वरीय ज्ञान से किसी वर्ग विशेष को वंचित कर देना कितना बड़ा अन्याय है |
स्त्री शुद्रो ना धीयताम के अनुसार स्त्री तथा शुद्र को वेद पढ़ना मना है | ये कहाँ तक उचित है ?
मेरे विचार से इसका इतना ही अभिप्राय होगा कि जो कोई ब्रह्मचर्य के अभाव में , बौद्धिक दोष, चरित्रहीनता ,उद्दण्डता आदि के कारण ज्ञान के अर्जन के अनुपयुक्त हो उसे पढ़ाना व्यर्थ है |
किसी भी शैक्षिक संस्था में यह घोषित करने के बाद भी कि इस संस्था के द्वार सबके लिए खुले हुवे हैं , उसमे दाखिला लेने के लिए निर्धारित न्यूनतम शैक्षिक योग्यता , बौद्धिक एवं शारीरिक स्तर कि जांच आदि शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है | उसी तरह वैदिक ज्ञान के लिए भी कुछ योग्यता निर्धारित कि गयी है | यही बात गीता में भी कही गयी है ---
इदं ते नापस्काय नाभक्ताय कदाचन |
न चाशुश्रषवे वाच्यं न च माम योअभ्यसूयति || (गीता --१८-६७ )
यह अध्यात्मिक ज्ञान ऐसे व्यक्ति को नहीं देना चाहिए जो तपस्वी ना हो , विद्या के प्रति भक्ति ना रखता हो , आचार्य के प्रति जिसमे आदर व सेवा भाव न हो, जो ईश्वर के प्रति आस्तिक बुद्धि रखने वाला न हो |
कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य मात्र में शास्त्र अध्यन का आधार कुछ विशिष्ट गुण हैं न कि किसी वर्ग विशेष में जन्म |
शुद्र कुल में जन्म लेने के कारण किसी के वेदाध्यन का अधिकारी न होने का कहीं संकेत तक नहीं है |
इस छोटी सी व्यवहारिक बातों को न समझ के पौराणिक आचार्यों ने अपनी दूषित भावनाओं को आरोपित कर इतना बड़ा अनर्थ कर डाला कि उसके कारण सभ्य समाज में वैदिक धर्माभिमानी लोगों का मुह काला हो गया |
सब से बड़े दुःख कि बात ये है कि चराचर जगत को एक ब्रह्म का ही रूप मानने वाले आदि गुरु शंकराचार्य ने भी उक्त सूत्र का भाष्य करते हुवे लिखा --
“शुद्र का विद्या में अधिकार नहीं है | क्यों की स्मृति शुद्र के लिए वेद के सुनने वेद के अध्यन करने तथा वेद के ज्ञान एवं अनुष्ठान का निषेध करती है | इस लिए समीप से वेद के अध्ययन को सुनने वाले शूद्रों के कान में सीसे एवं लाख भर देना चाहिए | शुद्र चलता फिरता शमशान है | इसलिए शुद्र के समीप अध्ययन नहीं करना चाहिए | यदि शुद्र वेद का उच्चारण करे तो उसकी जीभ काट देनी चाहिए | यदि वेद को याद करे तो शरीर के टुकड़े टुकड़े कर देना चाहिए | ब्राह्मण को चाहिए की शूद्रों को वेद का ज्ञान न दे | “
रामानुजाचार्य , वल्लभाचार्य , माधवाचार्य , निम्बार्काचार्य , आदि सभी पौराणिक आचार्यों ने आदि शंकराचार्य की बातों की ही पुष्टि की है |
परन्तु ये सब अर्थ इन आचार्यों की निकृष्ट एवं अवैदिक विचारधारा के परिचायक हैं | आर्ष साहित्य में कहीं से भी इनका समर्थन नहीं होता |
वेद के नाम पर प्रचलित वचन - स्त्री शुद्रो ना धीयताम को प्रस्तुत कर के प्रायः स्त्रियों तथा शूद्रों के वेद पढने पढ़ाने के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाया जाता रहा है |
वास्तव में देखा जाए तो वेदों में ही नहीं अपितु अन्य प्रमाणिक ग्रंथों में भी यह वचन उपलब्ध नहीं है | यह तो स्वार्थी तथा धूर्त लोगों की कपोल कल्पना है जिसके आधार पर विश्व के लगभग तीन चौथाई मानव जाति को वेद ज्ञान से वंचित रखने की घृणित चेष्टा की जाती रही है |
यथेमाम वाचं कल्याणीमावदानी जनेभ्यः | ब्रह्मराजान्याभ्याम शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च |
यजुर्वेद (२६ -२ )
अर्थात परमेश्वर कहता है की
जैसे मै अपनी कल्याणकारी वेद वाणी का मनुष्य मात्र के लिए उपदेश करता हूँ वैसे ही तुम भी किया करो | मैंने ब्राह्मणों, क्षत्रियो, वैश्यों, शूद्रों तथा अतिशूद्रों आदि सभी के लिए वेदों का प्रकाश किया है |
महर्षि मनु की दृष्टि में वेद से बढ़ कर दूसरा अन्य प्रमाण नहीं | उक्त मन्त्रों का भाष्य करते हुवे पौराणिक विद्वान् महीधर ने भी इसे उचित ठहराया है
इतिहास में कवष , ऐलूश आदि अनेक मंत्र द्रष्टा ऋषिओं के नाम मिलते हैं जिन्होंने शुद्र कुल में उत्पन्न हो कर भी ऋषितत्व प्राप्त किया |
वेद पढने का उन्हें अधिकार नहीं होता तो वे कैसे पढ़ते ? बिना पढ़े मन्त्रों का मंत्रार्थ या प्रत्यक्ष कैसे करते ?
ब्राह्मण ग्रन्थ वेद के व्याख्या ग्रन्थ हैं | ऋग्वेद के ऐतरेय ब्रह्मण का रचयिता दासी पुत्र महिदास था |
शुद्र कुल में उत्पन्न मातंग आदि अनेक ऋषिओं का ब्राह्मनत्व प्राप्ति इतिहास प्रसिद्द है |
आदरणीय श्री मदन शर्माजी,
ReplyDeleteज्ञानवर्धक और सार्थक पोस्ट
aapke vicharon se poori tarah se sahmat.sarthak aalekh.
ReplyDeleteमदन शर्मा जी आपने सत्य लिखा है हम लोगों को इन स्वार्थियों द्वारा पहले से ही मुर्ख बनाया जाता रहा है
ReplyDeleteइतिहास में कवष , ऐलूश आदि अनेक मंत्र द्रष्टा ऋषिओं के नाम मिलते हैं जिन्होंने शुद्र कुल में उत्पन्न हो कर भी ऋषितत्व प्राप्त किया |
ReplyDeleteवेद पढने का उन्हें अधिकार नहीं होता तो वे कैसे पढ़ते ? बिना पढ़े मन्त्रों का मंत्रार्थ या प्रत्यक्ष कैसे करते ?
satya vachan
gyaan vardhan ke liye koi seema ya bhedbhaav hone hi nahi chahiye.bahut uttam gyan vardhak lekh likha hai aapne.badhaai.
ReplyDeleteआदरणीय मदन जी..
ReplyDeleteआप के इस लेख में वेद के बारे में तार्किक ज्ञान मिला..हृदय को बहुत आनंददायक अनुभूति हुए..
कई भ्रांतियों को दूर करने में भी सहायक है ये लेख
आभार
सुंदर सकारात्मक सोच को संप्रेषित करती रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteसुंदर सकारात्मक सोच को संप्रेषित करती रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख लिखा आपने । ढेरों जानकारी मिल गयी !
ReplyDelete!बहुत अच्छा लेख लिखा आपने । ढेरों जानकारी मिल गयी!
ReplyDeleteएक विश्लेष्णात्मक विस्तृत आलेख ,
ReplyDeleteआंदोलित करता है .
आपका आलेख गहन विश्लेषणात्मक है ।
कुछ सोचने पर मजबुर करती हे आप की यह पोस्ट, धन्यवाद
गहन विवेचन ....तार्किक व्याख्या के लिए आभार
ReplyDeleteह्रदय से आभार ,इस अप्रतिम रचना के लिए...
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ReplyDeleteसकारात्मक तथा सुन्दर विचार
ReplyDeleteआपका आभार !!
महर्षि दयानंद के सन्देश को लेकर चलने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteइश्वर करे आप ब्लॉग जगत की उचाईयों को छुवें
मदन जी नमस्कार -
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख लिखा आपने । ढेरों जानकारी मिल गयी !
आभार!
सारगर्भित लेख बहुत अच्छी जानकारी मिली , आभार
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति अच्छे विचार !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.
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ReplyDeleteबहुत अच्छे विचार, धन्यवाद आपको..
ReplyDeleteआप से अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है बहुत सुंदर!
ReplyDeleteआज एक अच्छी आध्यात्मिक रचना पढने को मिली । धन्यवाद’
ReplyDeleteबहुत सार्थक जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट..आभार
ReplyDeleteआजकल तो कमाल पर कमाल कर रहे हैं…शानदार लेखन का परिचायक है।
ReplyDeleteइन्ही पाखंडी लोगो के वजह से वेद का ज्ञान जन -मानस तक पूर्ण रूप से पहुँचने में असमर्थ रहा है ! बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुति !
ReplyDeleteआदरणीय मदन जी
ReplyDeleteनमस्कार !
........बहुत अच्छा लेख लिखा आपने ।
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
तरह तरह की बातें समाज में प्रचलित हो जाती हैं.
ReplyDeleteकिसने क्या कहा,या किसी को आरोपित करें,इससे
अच्छा है कि हम स्वयं वेद पढ़ें,समझें और तदनुसार चलें.
यदि मेरे मन मस्तिष्क स्थिर नहीं है,चंचल हैं ,बाहरी और
आंतरिक आचरण भी शुद्ध नहीं हैं,तो मैं वेद पढ़ने का अधिकारी
नहीं बन सकता.और ऐसी स्थिति में यदि मैं वेद पढता भी हूँ तो
अर्थ का अनर्थ ही करूँगा.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
स्त्री शुद्रो ना धीयताम के अनुसार स्त्री तथा शुद्र को वेद पढ़ना मना है | ये कहाँ तक उचित है ?
ReplyDeleteमेरे विचार से इसका इतना ही अभिप्राय होगा कि जो कोई ब्रह्मचर्य के अभाव में , बौद्धिक दोष, चरित्रहीनता ,उद्दण्डता आदि के कारण ज्ञान के अर्जन के अनुपयुक्त हो उसे पढ़ाना व्यर्थ है |
आपने सम्यक दृष्टि से अभिप्राय ग्रहण किया है...अन्यथा श्लोक इस तथ्य का प्रमाण है कि स्त्री तथा शुद्र को वेद पढ़ने मनाही थी, कुछ अपवाद छोड़ कर.
अत्यंत तथ्यपरक एवं सारगर्भित लेख के लिये आपको हार्दिक बधाई।
आदि गुरु शंकराचार्य ने भी उक्त सूत्र का भाष्य करते हुवे लिखा --
ReplyDelete“शुद्र का विद्या में अधिकार नहीं है | क्यों की स्मृति शुद्र के लिए वेद के सुनने वेद के अध्यन करने तथा वेद के ज्ञान एवं अनुष्ठान का निषेध करती है | इस लिए समीप से वेद के अध्ययन को सुनने वाले शूद्रों के कान में सीसे एवं लाख भर देना चाहिए | शुद्र चलता फिरता शमशान है | इसलिए शुद्र के समीप अध्ययन नहीं करना चाहिए | यदि शुद्र वेद का उच्चारण करे तो उसकी जीभ काट देनी चाहिए | यदि वेद को याद करे तो शरीर के टुकड़े टुकड़े कर देना चाहिए | ब्राह्मण को चाहिए की शूद्रों को वेद का ज्ञान न दे "
प्रिय मदनजी,
मेरे संज्ञान में आदि गुरू शंकराचार्य जी का ऐसा कोई भाष्य नहीं है.
उन्होंने जो भी भाष्य लिखें हैं वे सब संस्कृत में है.उनके किसी भाष्य का गलत अनुवाद यदि हिन्दी में उक्त प्रकार से प्रस्तुत किया जाये तो अनुचित होगा.उनके भाष्य वास्तव में अत्यंत गूढ व गहन हैं.
हमें आरोप-प्रत्यारोप के परे हो कर सही बातों को अपनाने की ही कोशिश करनी चाहिये.
आभार.
आदरणीय गुरु जी नमस्ते !मैंने जो भी लिखा है प्रमाणिक लिखा है इसमें शंका की कोई भी गुंजाइश नहीं है | यहाँ पर लेख अधिक लंबा खिंच जाने के डर से मैंने उनका लिखा संस्कृत भाष्य पूर्ण रूप से नहीं दिया है सिर्फ हिंदी अनुवाद ही दिया है | जो की स्त्री शुद्रो ना धीयताम सूत्र का भाष्य करते हुवे शंकराचार्य जी ने लिखा है |
ReplyDeleteइन्टरनेट पर संस्कृत शुद्ध रूप से लिखना बहुत ही कठिन है किन्तु मै यथा शीघ्र यथा संभव उसका संस्कृत लेख भी मै लिख कर देने की कोशिश करूंगा |
ReplyDeleteआदरणीय मदन भ्राता श्री बहुत ही सुन्दर , सार्थक और ढेर सारी जानकारियां देता हुआ आप का ये लेख सराहनीय है मानव को मानवता से परिचय कराते रहें शुभ कामनाएं
ReplyDeleteईश्वर की सृष्टि में सभी प्राणी बराबर हैं | ईश्वरीय विधान में सबको बुद्धि के अनुसार अवसर की समानता प्राप्त है | उसका लाभ उठाना प्रत्येक जीव के अपने अपने सामर्थ्य पर निर्भर है |
आभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
बहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! शानदार लेख! धन्यवाद!
ReplyDeleteगहन ज्ञान और अध्यातम का सुंदर सम्प्रेषण आपकी इस पोस्ट में हुआ है ....आपका आभार
ReplyDeleteस्त्री ज्ञान की अधिकारिणी नहीं है , ऐसा आज भी सभ्य समाज में भ्रान्ति है . अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोग भी लड़कों को तो उच्च शिक्षा दिलाते हैं लेकिन अपनी बेटी को बेसिक शिक्षा के आगे नहीं बढ़ने देते . ज़रुरत हैं आजकल broad minded माता-पिता की जो बेटी और बेटे में भेद भाव न करे ! वैसे जागरूकता आ रही है , लेकिन दिल्ली अभी कोसों दूर है.! अति उत्तम आलेख के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete' नीम ' पेड़ एक गुण अनेक..........>>> संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2011/07/blog-post_19.html
thoughtful nice post
ReplyDeleteसकारात्मक सोच लिये बहुत ज्ञानवर्धक और सार्थक आलेख..आभार
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ReplyDeleteआदरणीय मदन जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आपने सत्य लिखा है आप के इस लेख में वेद के बारे में तार्किक ज्ञान मिला.
आदरणीय मदन जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आपने सत्य लिखा है आप के इस लेख में वेद के बारे में तार्किक ज्ञान मिला.
pahli bar aaya hu . aapne satya likha hai
ReplyDeleteवेदो अखिलो धर्म मूलम्!
ReplyDeleteआपका विवेचन बिल्कुल सही है।
ReplyDeleteउपनिषदों में कुछ स्थलों पर शूद्र और नारी आचार्य या गुरु की भूमिका में दिखाई देते हैं।
मदन भाई शायद तुलसी दास भी इन्हीं अर्थ का अन -अर्थ करने वाले व्याख्या कारों से ही प्रेरित थे जिन्होनें लिखा -
ReplyDeleteशूद्र गंवार ढोल पशु नारी ,सकल ताड़ना के अधिकारी .सटीक व्याख्या आपकी पढ़ कर कर संतोष हुआ .यही गलत बयानी तो कुरआन की व्याख्याताओं ने की है .
sundar aur achchi jaankari apne diya hi
ReplyDeleteसारगर्भित,ज्ञानवर्धक अभिव्यक्ति........ बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeletegyanvardhak baate aapene batai hai ....
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी....
ReplyDeleteसुन्दर लेख....वेद की ऋचाओं ने मन पवित्र कर दिया
बहुत बढिया प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteआज का आगरा और एक्टिवे लाइफ ब्लॉग की तरफ से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
आप सब ब्लॉगर भाई बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई / शुभकामनाएं
आपने सही कहा है ,ज्ञान जीविकोपार्जन का माध्यम होने के कारण ब्राह्मणों ने अपने मुट्ठी में दबा लिया होगा.या फिर जो व्यक्ति आचरण में शुद्र समान हो उन्हें ज्ञान से वंचित करना उचित मन जाता होगा . जिसको कालांतर में जाति से और स्त्री से जोड़ दिया गया होगा . मनन करने योग्य पोस्ट.
ReplyDeleteमदन जी नमस्कार aap bahut bahut badhai,
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