Tuesday, June 21, 2011

 ( गूगल देवता से साभार ) 


'तदेजति तन्नेजति तददूरिके तद्वन्तिके |
तदन्तरस्य सर्वस्य तदू सर्वस्यास्य बाह्यतः ||
यजुर्वेद अ. ४०

वह परात्मा सारे  संसार को गति देता है किन्तु स्वयं गति शून्य है ,अचल है | वह दूर भी है और समीप भी है | वही सारे संसार में अणु - परमाणु के अन्दर भी है और बाहर भी है |

'भ्रष्टाचार'  तथा काला धन देश की सबसे बड़ी समस्या है | यह एक ऐसी समस्या है, जिसे हमने न चाहते हुये भी शासन-प्रणाली और जन-जीवन का एक अनिवार्य अंग मान लिया है |  जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ किससे गुहार लगाईं जाए ?  
भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये जनता को और अधिक जागरुक बनना होगा और शुरुआत खुद से करनी होगी | बात-बात में सरकार को कोसने से काम नहीं चलेगा | जब हम खुद रिश्वत देने को तैयार रहेंगे तो सरकार क्या कर लेगी ?
हमें रिश्वत देना बन्द करना होगा, हमें हर स्तर पर ग़लत बात का विरोध करना होगा | ज़रूरत है तो उस हिम्मत की जिससे हम भ्रष्टाचार  तथा काला धन रूपी दानव से लड़ सकें……..
अब तो हमें भ्रष्टाचार से लड़ना ही होगा अन्यथा आने वाली पीढ़ी को शायद हम जबाब ना दे सकें |
एकजुट होकर हमें जन लोकपाल बिल के समर्थन में सत्याग्रह करना चाहिए जिसके पारित होने पर भ्रष्टाचार पर निश्चित ही अंकुश लगेगा |
आदरणीय अन्ना हजारे के प्रस्तावित अनशन का हम हरसंभव समर्थन करें यही हमारी लड़ाई की शुरुआत होगी |
सत्य मेव जयते …..!!

खामोश ये जहान है ,
खामोश ये अरमान है
मत समझो इसे कायरता ,
ये तो प्रलय का अवसान है

तीर है ना तलवार है
अहिंसा ही हथियार है
कितना ही जुल्म करो जालिम
हम ना रुकने को तैयार हैं

वीर कभी रुके नहीं
वीर कभी झुके नहीं
कितना भी क्यों ना वार हो
दिल से कभी टूटे नहीं

सत्य का असत्य से
हो रहा मुकाबला
सत्य के प्रहार से
असत्य कब तक बचेगा भला

वीर ना निराश हो
मन में रख हौसला
परिवर्तन की आंधी में
ब किसका है जोर चला

आंधी हो या तूफ़ान हो
तुम देश के नौ जवान हो
डर के पीछे मुड़ना नहीं
चाहे जोखिम में क्यों ना जान हो

तख़्त ताज की ना चाह है
कांटो भरी यह राह है
अपना बस यही अरमान हो
अपना देश सत्य शील में महान हो


यह जन्म हुवा किस अर्थ अहो
देखें फिर से यह व्यर्थ ना हो
छल बल तोड़ के आगे बढ़
शकुनी फिर से समर्थ ना हो

एक शकुनी कब का चला गया
अब नव शकुनियों की बहार है,
देखो बिछ चुका चौसर
गीदड़ भर रहा कैसा हुंकार है

आगे बढ़ अब हाथ मिला
मत बन अब तू मूढ़ मते
दसों दिशाएँ उद्घोष उठे
सत्य मेव जयते …..!!

2 comments:

  1. तख़्त ताज की ना चाह है
    कांटो भरी यह राह है
    अपना बस यही अरमान हो
    अपना देश सत्य शील में महान हो... bahut khoob

    ReplyDelete
  2. .

    मदन जी ,
    आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ . ek अत्यंत सार्थक एवं ozmayee कविता के लिए badhaii. ...आपका कथन सत्य है , भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए प्रत्येक इकाई को स्वयं ही प्रस्तुत होना होगा. yadi har व्यक्ति dosh mukt हो jaayega तो भ्रष्टाचार के panapne की gunjaaish ही नहीं रहेगी.

    .

    ReplyDelete