सब काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य का विचार कर के करना चाहिए
महर्षि दयानंद सरस्वती
मजहब ही सिखाता आपस में बैर रखना
आज सार्वजनिक मंचों से कुछ लोग यह उपदेश देते हैं की सभी धर्म एक हैं. सब धर्मों में एक
जैसी ही बातें है. सभी धर्मो का सार एक है. क्या कभी हमने इस पर विचार किया है?
मेरे विचार से यह घोर अज्ञानता का सूचक है तथा ये सब तुस्टीकरण के लिए ही हैं. क्या धर्म
अनेक होते हैं?
आज हम मजहब को ही धर्म मान बैठे हैं. मजहब उसे कहते हैं जो किसी व्यक्ति के द्वारा
स्थापित किया गया हो या जो इसका प्रणेता हो . जैसे ईसा मसीह ने ईसाई मत चलाया,
मोहम्मद साहब ने ईस्लाम मत, महावीर जी ने जैन मत, गौतम बुद्ध के समर्थकों ने बौद्ध मत,
गुरु नानक जी ने सिक्ख मत तथा कबीर जी के समर्थकों ने कबीर पंथ को चलाया, ये सारे
मत अपने प्रणेता के सहारे ही चल रहे हैं. यदि इन मतों से उनके प्रणेता को हटा दिया जाय तो
इनका अस्तित्व ही संकट में पड़ जायेगा.
क्या धर्म का कोई प्रणेता है?
धर्म तो इश्वर प्रदत्त है जिसकी जानकारी हमें अपने गुरु जनों द्वारा प्राप्त होती है और वह है सत्य सनातन वैदिक धर्म.
इनमे से चाहे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को निकालें या योगीराज श्रीकृष्ण को, इसका अस्तित्व खतरे में नहीं पड़ता क्यों की उनका अस्तित्व इन महापुरुषों से भी बहुत पहले का है .वैदिक धर्म बताता है-
संगच्छ्धवं संवद्धवं सं वो मनांसि जानताम, देवाभागम यथापुर्वे संजनानाम उपासते इसका मतलब है -प्रेम से मिलकर चलो बोलो सभी ज्ञानी बनो, पूर्वजों की भांति तुम कर्त्तव्य के मानी बनो .
लेकिन ईस्लाम कहता है की जो लोग कुरान एवं पैगम्बर पर ईमान न लाये वो काफ़िर है. उसे कत्ल करो. इसका मतलब है मुसलमानों के अलावा सभी काफ़िर हैं . अब आप ही सोचिये एक वैदिक धर्मी तथा ईस्लाम धर्मी के बीच कैसे मित्रता हो सकती है? वैदिक धर्मी कहता है –
सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयाः .......माँ कश्चिददुःख भागभवेत् . अर्थात सब सुखी हों ......कोई भी दुखी न हो.
लेकिन ईस्लाम कहता है निर्दोष निर्बल पशुओं को तडपा - तडपा के काटो या मारो अर्थात हलाल करो.
वेद कहता है की देश धर्म तथा जाति के कल्याण के लिए खुद का बलिदान करने के लिए तत्पर रहो. जबकि कुरान कहता है की खुदा को खुश करने के लिए निर्दोष बकरे को काट के उसे भेंट चढ़ाएं. यदि खुदा को खुश करना ही है तो खुद को या अपनी औलाद की बलि क्यों नहीं देते ?
चार्वाक, बौद्ध तथा जैन धर्मों की मान्यता है की जगत का कारक कोई नहीं है अर्थात ये अपने आप उत्पन्न हो गए हैं. जबकि वेद जगत का कारक इश्वर को मानता है. चार्वाक तथा वाममार्गीओं के जीवन का उद्देश्य खाओ, पीओ और भोग विलास करो. जब की वेद के अनुसार धर्म पे चल कर अर्थ कमायें तथा कामना की पूर्ति करें, अंत में मोक्ष प्राप्त हो. आप ही बताएं जब सिद्धांतों में इतना अंतर हो तो एकता कैसे संभव हो सकती है?
वेद कहता है की ईश्वर सर्व व्यापक है. जब की ईस्लाम कहता है की अल्ल्लाह सातवें आसमान में रहता है और ईसाईयों का कहना है की परमात्मा चौथे आसमान पर सनाई पर्वत पर विराजमान है.
वैदिक धर्मी के लिए मद्यपान निषेध है. मुस्लीम भी कहते हैं की हमारे मजहब में शराब पीना मना है. लेकिन कुरान कहती है स्वर्ग में शराब की नदियाँ बहती हैं.
वेद का ईश्वर पापिओं का पाप नाश नहीं करता. उसका न्याय मनुष्य के द्वारा किये गए कर्मों पर आधारित है. भुक्तव्यम कर्मं फलं
जब की बाइबिल पापों को क्षमा करने की बात करता है.
पौराणिक मृतक श्राद्ध तर्पण को मान्यता देते हैं जब की वैदिक धर्मी जीते जी अपने बुजुर्गों की खान पान और वस्त्र द्वारा श्रद्धा पूर्वक सेवा कर के उनकी ईक्षाओं को तृप्त करना ही सच्चा श्राद्ध तर्पण मानते है. पौराणिक गंगा स्नान या तीर्थ विशेष के दर्शन को पापों से छुटकारा पाने का उपाय मानते हैं जब की वेद को मानने वाले ईश्वर को पूर्ण न्यायकारी मानते हुवे अच्छे कर्मों का फल अच्छा तथा बुरे कर्मों का फल बुरा ही मिलेगा ये मानते हैं.
वेद पुर्नजन्म को मान्यता देता है –
पुनर्मनः पुनरायुर्म दाग्नः पुनः प्राणः पुनरात्मा मनश्चक्षु आग्नः पुनः श्रोत्रं आग्नः
इसके विपरीत मुस्लिम जन पुनर्जन्म को नहीं मानते. जो पुनर्जन्म को नहीं मानेगा वह अगले जन्म को सुखी बनाने के लिए शुभ काम क्यों करेगा? वह अत्याचार व्यभिचार करने से क्यों डरेगा?
इसलिए मजहब ही हमें सिखाता आपस में बैर रखना उचित प्रतीत होता है. जब कोई भी संप्रदाय ईश्वर की जगह किसी व्यक्ति विशेष को विशिष्ट दर्जा देता है उसे परमात्मा का पैगम्बर या अवतार मान लेता है तो उनका मत धर्म न होकर मजहब बन जाता है यही मजहब मत या पंथ विश्व में अशांति का कारण बनते है
धर्म तो उन मान्यताओं को आचरण में धारने का नाम है जो महर्षि मनु द्वारा बताये गए धर्म के दस लक्षणों के नाम से जाने जाते हैं -
धृति क्षमा दमोस्तेय शौचं इन्द्रिय निग्रह धीर्विद्या सत्यम अक्रोधः दशकं धर्मः लक्षणं
अतःवास्तव में हमें ये कहना चाहिए -
धर्म नहीं सिखाता हमें आपस में बैर रखना
मजहब ही सिखाता आपस में बैर रखना
स्वामी जी के बारे में भी बताया होता ज्यादा ठीक होता ।
ReplyDeleteएक
ReplyDeleteविश्लेष्णात्मक
विस्तृत आलेख ,
आंदोलित करता है ...
काश कोई भी
धर्म , मज़हब, मत का नाम आते ही
इंसानियत का जज़्बा ही मन में आए तो ... !
धर्म की आड़ में लोग अत्याचार में लिप्त हो जाएँ तो क्या कहा जाए । मानवता ही परम धर्म होना चाहिए। आपका आलेख गहन विश्लेषणात्मक है ।
ReplyDeleteश्रीमान संदीप पवार जी, दानिश जी, दिव्या जी,सुशील जी तथा हरीश सिंह जी मेरे ब्लॉग पर आने और टिप्पणी दे कर हौसला आफजाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया
ReplyDeleteआशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर प्राप्त होता रहेगा ............
श्रीमानसुशील बाकलीवाल जी, अभी मैं ब्लॉग जगत में बिलकुल नया हूँ तथा इसके सम्बन्ध में मेरी जानकारी लगभग शून्य ही है.
ReplyDeleteअभी मुझे लेखन से ले कर ब्लॉग पोस्टिंग तक बहुत कुछ सीखना बाकी है. अभी मैं अपने कार्यों में इतना व्यस्त हूँ की इन सब चीजों के लिए समय नहीं निकल पाता.
आप जैसे सज्जन लोगों से सीखने की कोशीश भी कर रहा हूँ. आप ने ऐसी जानकारी देने के लिए अपना बहुमूल्य समय दिया इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद .
आशा है आगे भी आप यूँ ही बहुमूल्य जानकारी देते रहेंगे.
अतःवास्तव में हमें ये कहना चाहिए -
ReplyDeleteधर्म नहीं सिखाता हमें आपस में बैर रखना
सही कहा आपने...धर्म के सच्चे मर्म को सभी को आत्मसात करना चाहिए.
रंगपंचमी की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ...
आपको भी अनेक शुभकामनाये
ReplyDeleteदुखती रग को मत छुए किसी अन्य सब्जेक्ट
पर लिखिए, बहुत सारे है जीवन को सुंदर बनाने के लिए !
इसलिए मजहब ही हमें सिखाता आपस में बैर रखना उचित प्रतीत होता है. जब कोई भी संप्रदाय ईश्वर की जगह किसी व्यक्ति विशेष को विशिष्ट दर्जा देता है उसे परमात्मा का पैगम्बर या अवतार मान लेता है तो उनका मत धर्म न होकर मजहब बन जाता है यही मजहब मत या पंथ विश्व में अशांति का कारण बनते है
ReplyDeleteवाह जी बहुत अच्छी ओर सच्ची बात कह दी आप ने, बहुत सुंदर विचार, बहुत कुछ सोचने पर मजबुर करती हे आप की यह पोस्ट, धन्यवाद
डाक्टर वर्षा सिंह जी, सुमन जी तथा श्रीमान राज भाटिया जी आपका यहाँ आने के लिए धन्यवाद. आपको मेरे प्रयास की सराहना करने के लिये आभार...
ReplyDeleteआपका प्रोत्साहन सदैव आवश्यक है ।आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर प्राप्त होता रहेगा ............
.
आदरणीय मदन शर्मा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
पहली बार आपकी पोस्ट पे आया
आपका आलेख गहन विश्लेषणात्मक है ।
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
ReplyDeleteआपका आलेख गहन विश्लेषणात्मक है|बहुत सुंदर विचार, धन्यवाद|
ReplyDeletebahut hi sahi likha hai
ReplyDeleteaapke vicharo ne nai raah dikhai ,bilkul sach hai dharm banaye gaye tabhi bane ,varna insaan kya jaane in bhedo ko .....ati sundar .
ReplyDeleteबड़ी अच्छी अच्छी बातें बांची हैं जी आपने. धन्यवाद.
ReplyDeleteगहन विश्लेषणात्मक आलेख....
ReplyDeletemadan sharma ji ..aapka aalekh vichaon ko udvelit kar sochane par majboor karta hai....mere blog par aane ka bahut dhanyavad...jisse mujhe aapke blog ka link mil saka...
ReplyDeleteधर्म नहीं सिखाता हमें आपस में बैर रखना
ReplyDeleteमजहब ही सिखाता आपस में बैर रखना
बल्किुल सही कहा आपने। धर्म और मजहब में यही अंतर है।
सार्थक चर्चा।
मदन जी एक ही पोस्ट लिखी अब तक ? पर लिखा अच्छा ।
ReplyDeleteजो प्राब्लम आये बताना ।
मदनजी,पहली बार आने का सोभाग्य मिला है --आपके विचार जानकार ख़ुशी हुई --सच में मजहब नही सिखाता आपस में बेर करना !चाहे वो हिन्दू हो मुस्लिम हो सिक्ख हो या ईसाई हो !
ReplyDeleteपर हिस्ट्री उठाकर देखो तो सबसे ऊपर नाम मुस्लिम बादशाहों का ही आएगा जिन्होंने मन्दिरो को तुड़वाकर मज़िदो का निर्माण किया --जबरन लोगो का धर्म परिवर्तन किया --हमारे सारे गुरुओ ने धर्म को बचाया --हमारे गुरु गोविन्द सिंह जी ने इन धर्म के राक्षसों के लिए ही सिक्ख -पंथ की स्थापना की हे -अपने पिता अपने चारो बच्चो का बलिदान हिन्दू धर्म को बचाने के लिए किया --
और आज भी ये 'आतंकवादी' बन हम सब को मार रहे है ?
क्यों हर आतंकवादी मुस्लिम ही होता है ?
मानवता ही सबका धर्म होना चाहिए .......आप मेरे ब्लॉग पर आये उत्साह बढाया धन्यवाद ..
ReplyDelete@>श्रीमान संजय भास्कर जी.
ReplyDelete@>रश्मि प्रभा जी.
@>जल कुमार जी.
@>संध्या शर्मा जी,
@>कविता जी.
@>सारा सच जी,
@>राजीव कुमार कुल्श्रेस्थ जी.
@>दर्शन कौर धनोए जी तथा
@>मंजुला जी
मेरे ब्लॉग पर आने और टिप्पणी दे कर हौसला आफजाई के लिए
आपका तहे दिल से शुक्रिया.
आपका प्रोत्साहन सदैव आवश्यक है.
आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर प्राप्त होता रहेगा .............
आदरणीय मदन शर्मा जी
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आलेख बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर और आपने जो जानकारी उसके लिए आपका धन्यवाद.
मदन जी मेरा नमस्ते स्वीकार कीजिये!
ReplyDeleteआज इक़बाल की पंक्तियों को बदलने की जरुरत है।
मजहब ही सिखाता आपस में बैर करना। आज की स्तिथि में सटीक विचार !!!
आप महर्षि दयानंद की विचारधारा को लेकर आगे चल रहे है ये आपके लेखो से पता चल रहा है।
मैं आपसे बहुत प्रभावित हूँ। ये राह ही ऐसा है, आगे जाने कितने लोग आपके विपरीत खड़े होंगे पर कभी विचलित नो होइएगा।
सौ बार जन्म लेंगे। सौ बार फ़ना होंगे।
अहसान दयानंद के फिर भी न अदा होंगे।
मदन जी मेरा नमस्ते स्वीकार कीजिये!
ReplyDeleteआज इक़बाल की पंक्तियों को बदलने की जरुरत है।
मजहब ही सिखाता आपस में बैर करना। आज की स्तिथि में सटीक विचार !!!
आप महर्षि दयानंद की विचारधारा को लेकर आगे चल रहे है ये आपके लेखो से पता चल रहा है।
मैं आपसे बहुत प्रभावित हूँ। ये राह ही ऐसा है, आगे जाने कितने लोग आपके विपरीत खड़े होंगे पर कभी विचलित नो होइएगा।
सौ बार जन्म लेंगे। सौ बार फ़ना होंगे।
अहसान दयानंद के फिर भी न अदा होंगे।
मदन जी,
ReplyDeleteहम आप के साथ है..अगर सारे धर्म एक ही बात सिखाते तो तालिबान और पाकिस्तान देखने को नहीं मिलता..
न ही बामियान की बौध प्रतिमाएं टूटती न ही मंदिरों का विनाश हुआ होता..ना ही पद्मिनी ने जौहर किया होता..
"जाट देवता (संदीप पवांर) said...
ReplyDeleteस्वामी जी के बारे में भी बताया होता ज्यादा ठीक होता"
I WILL TELL YOU ABOUT_
Dayanand Saraswati
The founder of Arya Samaj (the Society of Nobles), Swami Dayanand Saraswati was one of the greatest religious leaders ever born in India. He was responsible, to some an extent, in bringing back the age-old teaching tradition of 'Gurukul'. He advocated for the equal right of women and condemned practices such as untouchability, animal sacrifice, idol worship, etc.
Early Life
Swami Dayanand Saraswati was born as 'Moolashankar' in Gujarat, in the year 1824. Even when he was a child, Swami Dayanand Saraswati had a keen and inquisitive mind. Once, Mool Shankar was keeping a fast on the Shivratri festival day, along with his entire family. They had to be awake throughout the night. At night, he saw a mouse dancing on the Shivalinga. Surprised at this incident, he asked his elders
Born as Mool Shankar Tiwari to a pious Gujarati couple in 1824, Mool Shankar had an inquisitive mind, and a compassionate nature from his childhood. Once on a Shivaratri festival day, which is observed by fasting and keeping awake the whole night in obedience to Lord Shiva, he saw a mouse dancing on the Shivalinga idol. He tried to find out from elders why this "God Almighty" could not defend himself against the menace of a petty mouse, for which he was rebuked! The sudden death of a favorite uncle, and his beloved sister caused much turmoil in Mool Shankar. He became quite detached from the world, and one day left home, incognito in search of a guru.
The search was long and arduous. Finally, at the age of thirty-six he found his mentor in Virajananda Saraswati, who was blind, but was a master of the ancient lore. The training was rigorous, and the guru was ruthless. But here was a disciple of a lifetime. As the teacher's fee (gurudakshina -- also has a sacred connotation in Hindu thought; it cannot be denied) he wanted his student to devote his life for the revival of Hinduism. The guru called him Dayananda.
Philosophy of Swami Dayananda Saraswati
Dayanand Sarasvati believed that the Vedas were perfect and infallible.
Dayananda advocated the doctrine of karma, skepticism in dogma, and emphasised the ideals of brahmacharya (celibacy and devotion to God).
Arya Samaj
Arya Samaj or the 'Society of Nobles' is a Hindu reform movement, founded by Swami Dayanand Saraswati in the year 1875. The main principles, on which Arya Samaj is based, condemn…
Ancestor worship
Animal sacrifices
Caste system
Child marriages
Discrimination against women
Idol worship
Pilgrimages
Untouchability
If I Written any Wrong Thing or make a mistake ......Then Plz Let Me Know it...
श्रीमान सवाई सिंह जी, पूनम जी, आशुतोष जी तथा मिस्टर अभी जी मेरे ब्लॉग पे आने तथा मेरे विचारों को पूरा समर्थन देने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया.
ReplyDeleteआशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर प्राप्त होता रहेगा ........
पूनम जी, मेरे जो ये विचार हैं वो महर्षि दयानंद जी की ही देन है.
ReplyDeleteआजकी सामाजिक स्थिति देख कर आँखों में पानी भर आता है. आपने बिलकुल ठीक कहा है --
सौ बार जन्म लेंगे। सौ बार फ़ना होंगे।
अहसान दयानंद के फिर भी न अदा होंगे।
यदि कुछ बातों को छोड़ दिया जाय तो आज भी उनकी लगभग सभी बातें आज के विज्ञानं तथा प्रगतिशीलता के ढांचे में बिलकुल फिट बैठती हैं.
मेरे विचारों को पूरा समर्थन देने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया.
श्रीमान आशुतोष जी तथा आदरणीया दर्शन कौर जी मैं आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ. मेरा भी यही सवाल है ऐसा हमारे साथ ही आखिर क्यूँ होता है ? कब तक हम जाति, धर्म, सम्प्रदाय के नाम पे बंटे रहेंगे? हम कब तक किसी मसीहा का इंतजार करते रहेंगे?
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पे आने तथा मेरे विचारों को पूरा समर्थन देने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया.
आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर प्राप्त होता रहेगा ........
मिस्टर अभी.जी! आपका महर्षि दयानंद जी के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद.यदि आप हिंदी में लिखते तो और भी अच्छा होता. कृपया हिंदी में लिखने की कोशिश करें और भी आनंद आएगा.
ReplyDeleteआपका ई मेल मिला आप की बातें दिल को छू गयीं . इसके लिए धन्यवाद.
मेरा ये लेख आप जैसे युवा साथियों के लिए ही है. देश का भविष्य आप जैसे लोगों के कन्धों पर है.
मेरे ब्लॉग पे आने तथा मेरे विचारों को पूरा समर्थन देने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया.
आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर प्राप्त होता रहेगा ........
बेहतरीन आलेख। आपके विचार बहुत सुंदर है।
ReplyDeleteमानवता ही सबका धर्म होना चाहिए .....
जाट देवता की राम राम।
ReplyDeleteऐसे ही कटु सत्य सुन कर लोग झुंझला जाते है ।
अरे वाह ! मदन जी क्या वेद ज्ञान का छक्का मारा है आपने. मन प्रसन्न हो गया. कहतें हैं 'सब्र का फल मीठा होता है".कुछ देर हुई मुझसे ,इसके लिए छमा प्रार्थी हूँ.लेकिन आपकी पोस्ट पढ़ कर अब तो बस यही मन करता है गाने को
ReplyDelete"सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयाः .......माँ कश्चिददुःख भागभवेत् . अर्थात सब सुखी हों ......कोई भी दुखी न हो."
होली का रंग तो चढा ही था,३१ मार्च का वजन भी था सिर पर.अब जल्दी शिकायत दूर करने की कोशिश करूँगा.
bahut sateek bat kahi hai aapne .aabhar .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण तुलना !
ReplyDeletevery good,well done madanji!
ReplyDeleteI'm surprised.
मदन जी सादर प्रणाम!
ReplyDeleteआज पहली बार आपके 'घर' पधारी हु मुझे आश्चर्य हे की मै पहले से आपसे परिचित क्यों नही हु --इतनी बेबाक लेखनी मै ने आज तक नही देखी --
बहुत अच्छा प्रयास है आपके बधाई हो
Sahi Likha hai Aapne
ReplyDeleteHonestly speaking , I'm lovin' this post.
ReplyDeleteभारत के विश्व कप जीतने की बहुत बहुत बधाई मदन भाई
ReplyDeleteधोनी के रणबांकुरों ने जो जीत का परचम लहराया है
हम सब को एकता का सन्देश याद दिलाया है,
आओ हम सब मिल एक हो जाएँ
अपने प्यारे देश को महान बनायें
और मिल जुल गायें
'अ मेरे प्यारे वतन तुझ पे दिल कुर्बान'
क्या सच में हम सब ऐसा कर पायेंगे भाई ?
विवेक ,हौंसला ,हिम्मत एकजुटता से सब कुछ संभव होता है भाई.
Awesome Efforts ....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपको मेरी तरफ से नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक विवेचन किया.....नवसंवत्सर की मंगलकामनाएं!
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteएक उच्च कोटि का आलेख। बहुत सी नई जानकारी मिली। आभार इस आलेख के लिए।
ReplyDeleteएक उच्च कोटि का आलेख। बहुत सी नई जानकारी मिली। आभार इस आलेख के लिए।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteआपकी जितनी तारीफ करू उतनी कम इस पोस्ट को ढेर सारा प्यार
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteआपकी जितनी तारीफ करू उतनी कम इस पोस्ट को ढेर सारा प्यार
thanks for interesting post
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ , बहुत ही अच्छा लगा |
ReplyDeleteकाफी सटीक और विश्लेष्णात्मक जानकारी
मेरे ब्लॉग पर भी पधारे और अपनी राय से अवगत करायें
http://www.avaneesh99.blogspot.com/
"सुगना फाऊंडेशन जोधपुर" "हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम" "ब्लॉग की ख़बरें" और"आज का आगरा" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को " "भगवान महावीर जयन्ति"" की बहुत बहुत शुभकामनाये !
ReplyDeleteसवाई सिंह राजपुरोहित
मानवता ही परम धर्म होना चाहिए। आपका आलेख गहन विश्लेषणात्मक है ....
ReplyDeleteऐसे ही कटु सत्य सुन कर लोग झुंझला जाते है
ReplyDeleteबल्किुल सही कहा आपने।
ReplyDeletesahi kaha hi मजहब ही सिखाता आपस में बैर रखना .....
ReplyDeletemadan ji aapne sahi likha h. man ko kafi achcha laga ki aaj ke privesh main log panth aur daram main antar hi nahin kar pate h.
ReplyDeletewo log jo sahmat nahin h ya koi sanka ho to swami dayanand ji ki book "satyarth prakash" padhe..isko padhne ke baad koi sanka nahi rah jayegi...