मैंने कहा है इसलिए किसी बात को स्वीकार मत करो . इस पर विचार करो , समझो तथा इसपर मनन करो . यदि इसे सही समझते हो तो स्वीकार करो अन्यथा इसे मत मानो .
--महर्षि दयानंद सरस्वती
महर्षि दयानंद सरस्वती के जन्म दिन पर
विक्रमी संवत 1881 या सन 1824इसवी में गुजरात के टंकारा ग्राम में उदीच्य ब्राह्मण के घर में एक बालक का जन्म हुआ . उस बालक को देख के कोई भी नहीं कह सकता था की यही बालक आगे चल कर देश और जाति को सर्वनाश से बचाएगा . संसार में करोड़ों लोग प्रतिदिन पैदा होते हैं तथा ख़त्म भी हो जाते हैं . परन्तु इनमे से कोई विरला ही होता है जो समस्त मनुष्य जाति को दुःख से बचा सके . वास्तव में ऐसे लोगों का जीवन ही सफल जीवन कहलाता है .
महर्षि दयानंद जिनके बचपन का नाम मूलशंकर था ने सच्चे शिव के जिज्ञासु बन के माता पिता के लाड़ प्यार को भी त्यागा तथा सच्चे शिव की जानकारी पाने के लिए कठोर परिश्रम व अनेक यातनाएं सह कर अपने गुरु विरजानंद तक पहुँच पाए थे .
जिस प्रकार दयानंद जी को इससे पहले मन मुताबिक़ गुरु नहीं मिला था उसी तरह स्वामी विरजानंद जी को भी दयानंद जी जैसा शिष्य नहीं प्राप्त हुआ था . दयानंद जी को पढ़ाते ही विरजानंद जी ने जान लिया की यह अपूर्व आत्मा है यह जरूर संसार का सुधार करेगा .
उन्होंने सर्वप्रथम दयानंद को यह शिक्षा दी की प्राचीन ऋषियों के ग्रन्थ पढ़ना चाहिए और आजकल के स्वार्थी लोगों के ग्रन्थ नहीं पढनी चाहिए विरजानंद जी ने लगभग सात वर्ष तक दयानंद जी को पढ़ा कर पूरा विद्वान् बना दिया . विरजानंद जी ने अपने शिष्य की कुशाग्र बुद्धि , इश्वर आत्मा , तप व त्याग तथा कुछ कर गुजरने की सोच को देख कर मानव समाज के उत्थान के लिए गुरु दक्षिणा में कुछ जिम्मेद्वारी सौंपी तथा संकल्प कराया की वे सारे भारत देश में वैदिक धर्म का प्रचार व वेद विरुद्ध मतों का खण्डन करेंगे .
दयानन्द जी ने जिम्मेद्वारी को निष्ठा व लगन से निभाते हुए विश्व का कल्याण , सब की उन्नति को किनारे रखते हुए , सबकी उन्नति को अपनी उन्नति माना . सच्चाई पर बल देते हुए कहा – सत्यम वदिष्यामि , जो कुछ भी कहूंगा सत्य कहूंगा . यहाँ तक की अपने ग्रन्थ का नाम भी सत्यार्थ प्रकाश रखा . दयानंद जी ने आर्य समाज के दस नियमों में भी पांच बार सत्य का उल्लेख किया है . इससे यह स्पष्ट होता है की महर्षि दयानन्द कितने सत्य प्रिय थे .
महर्षि दयानन्द जी ने अपने जीवन काल में महज सत्य वादिता के कारण किसी से समझौता नहीं किया और सत्य पर अड़े रहे तथा विजय भी हासिल की .
दयानन्द जी के जीवन को पढ़ने पर साफ़ जाहिर होता है . चाहे मुम्बई का शास्त्रार्थ हो , काशी के पंडितों के साथ शाश्त्रार्थ हो या हरिद्वार के कुम्भ के मेले में पाखण्ड
खंडिनी पताका लहरा कर पाखंड का भंडाफोड़ सत्य के आधार पे किया हो.
इसी सत्यता के प्रचार प्रसार के लिए देव दयानन्द ने अठारह घंटे की समाधि को त्यागा था . मात्र इतना ही नहीं अपितु दयानन्द की जीवनी से पता चलता है की कई लोगों ने उन्हें धन का लोभ दे के सत्य के मार्ग से हटाना चाहा , यहाँ तक की राज -पाट तथा प्रसिद्द मंदिर के महंथी का लोभ भी दिया . जबाब में ऋषि ने कहा इसे तो मैं सांस रोक के पार कर सकता हूँ , परन्तु परमात्मा के राज्य को कैसे पार कर सकूंगा ?
नरेश ने कहा महाराजा इतना बड़ा मौक़ा तथा इतना बड़ा दानी आपको नहीं मिलेगा . जबाब में ऋषि ने कहा राजन इतना बड़ा त्यागी भी आपको नहीं मिलेगा .
ऋषि दयानन्द इससे अलग सत्यता का प्रमाण और क्या देते ? कुछ लोगों ने उनको जीवन से हाथ धोने की धमकी भी दी , किन्तु आर्यसमाज के प्रवर्तक दयानन्दजी सत्य से कभी अलग नहीं हटे, और पहाड़ों की चट्टान बन कर असत्य का विरोध करते रहे और कहा —
निन्दन्तु नीति निपुणा यदि वा स्तुवन्तु ,
लक्ष्मिरास्माविशतु गच्छ्रू व यथेष्टम
अद्येवा वा मरान्मस्तु उगान्तारे वा
न्यायात्पथाह प्रविचलन्ति पदम् न धीरा
-भ्रिथहरी
सब मनुष्यों को यह निश्चय जानना चाहिए की चाहे सांसारिक अपने प्रयोजन की नीति में
वरतने वाले चतुर पुरुष निंदा करे या स्तुति करें , लक्ष्मी प्राप्त होवे या नष्ट हो जावें , आज ही मरण होवे या वर्षांतर में मृत्यु प्राप्त होवें तथापि जो मनुष्य धर्म युक्त मार्ग से एक पग भी विरुद्ध नहीं चलते वे ही धीर पुरुष धन्य हैं .
उस काल में वैदिक धर्म का प्रचार करने वाले तथा मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले अकेले दयानन्द जी ही थे . उनका बहुत कडा विरोध हुआ , कई बार तो उनपर प्राणघातक वार भी हुवे .काशी शास्त्रार्थ के समय उन पर हुवे हमले में स्वयं काशी राज भी प्रमुख थे .
महर्षि दयानन्दजी को शास्त्रार्थ में कोई भी ना हरा सका .उन्होंने कहा की वेद ईश्वरीय ज्ञान है .
इसी सत्य के प्रतिपादन के फलस्वरुप दयानन्द जी को अपने लोगों द्वारा ही कईयों बार विष का पान भी करना पड़ा . किन्तु उन्होंने असत्य का पक्षधर होने से मना किया तथा जीवन भर सत्य के लिए लड़ते रहे .
30अक्टूबर 1883इसवी को दिवाली के दिन अजमेर नगर में इस नश्वर शरीर को
उन्होंने त्याग दिया . इस समय महर्षि दयानन्द जी के काम को बहूत कम लोग जानते हैं इसलिए उनके भक्त भी कम हैं . तो भी जैसे जैसे समाज शिक्षित हो रहा है उनकी बातें लोगों के समझ में आरही हैं तथा उनके भक्तों की संख्या दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही है . करोड़ों लोग महर्षि दयानन्द जी की प्रशंशा कर के अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रहे हैं .
आज हमें यह विचार करना है की दयानन्द ने हमारे लिए क्या किया ? ऋषि के आने के पहले हमें इश्वर पूजा करनी नहीं आती थी . सभी जानते हैं की जिस मनुष्य को अपने बनाने वाले से प्रेम नहीं उससे बढ़ कर कृतघ्न भला और कौन होगा ? स्वामी दयानन्द के आने के पहले लोग ईश्वर को भी नहीं जानते थे . पत्थर की मूर्ति को ही ईश्वर समझ रखा था . कब्रों एवं मजारों पर माथा टेकते थे तथा अनेक प्रकार के ढोंग रच के अपना जीवन गवांते थे .दयानन्द जी ने बताया की ईश्वर हमारा परम पिता परमात्मा है , हम सब उसके पुत्र हैं . ईश्वर दुसरे तीसरे या सातवें आसमान में नहीं अपितु वह तो इस ब्रह्माण्ड के कण कण में व्याप्त है . इधर उधर नदी पहाडो ,नगरों , तीर्थ स्थानों में ईश्वर की खोज में घुमना ठीक नहीं है . किसी भी नबी पैगम्बर पीर पंडित या मुल्ला आदि की शिफारिश करने की जरूरत नहीं . जिस तरह जो भी बच्चा जब भी चाहे अपनी माँ के गोद में बैठ सकता है उसी तरह जो भी जीव चाहे अपने ईश्वर को पा सकता है . उन्होंने बताया पत्थर की मूर्ति को पूजने से कोई लाभ नहीं क्यों की मूर्तियाँ तो आदमी की बनाई हुई हैं . यह न तो बोल सकती हैं और ना खा ही सकती हैं . न अपने को किसी आक्रमण से बचा ही सकती हैं . उनको तो चोर भी चुरा सकते हैं . भला ऐसी शक्तिहीन वस्तुओं की पूजा से क्या
लाभ ?
लाभ ?
पूजा तो उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की करनी चाहिए जो इस सारे ब्रह्माण्ड को
गति देता है . सूर्य में जो प्रकाश भरता है ,वायु को जो प्रवाहित करता है , सारे संसार का जो पालनहार है , हमें उसी की पूजा करनी चाहिए .वह हमारे हर्दय में भी मौजूद है . वहीं हमें उनकी खोज करनी चाहिए. आज मूर्तियों पे लोग करोडो रुपये खर्च करते हैं . एक एक मूर्ति करोडो के जेवर पहनती है परन्तु इश्वर की बनायी मूर्तियाँ अर्थात अनाथ बच्चे अन्न के दाने दाने के लिए मुहताज हैं . आज हम यदि महर्षि दयानन्द जी का कहना मानें तथा मूर्ति पूजा छोड़ कर वही पैसा देश की तरक्की व असहाय मनुष्यों की सेवा में लगाएं तो हमारा देश अच्छा हो सकता है .
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ReplyDelete@-संसार में करोड़ों लोग प्रतिदिन पैदा होते हैं तथा ख़त्म भी हो जाते हैं . परन्तु इनमे से कोई विरला ही होता है जो समस्त मनुष्य जाति को दुःख से बचा सके . वास्तव में ऐसे लोगों का जीवन ही सफल जीवन कहलाता है ...
बहुत सही लिखा आपने । धन्य हैं ऐसे धीर पुरुष ।
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आपके कार्य की जितनी तारीफ की जाए वह कम होगी ! मेरी शुभकामनायें स्वीकार करें !
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने| धन्य हैं ऐसे धीर पुरुष| धन्यवाद्|
ReplyDeleteबढिया पोस्ट,
ReplyDeleteएक सार्थक पोस्ट के लिए आभार......
ReplyDeleteगहन चिन्तनयुक्त पोस्ट ...
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने|
ReplyDeleteदिव्या जी, मनप्रीत कौर जी, सतीश सक्सेना जी, दिनेश शर्मा जी,
ReplyDeleteपताली द विलेज , वन्दना अवस्थी दुबे जी,
डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
डा. वर्षा सिंह जी तथा सोनू जी हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया ..
मैं तो महर्षि स्वामी दयानंद के चरणों की धूल का एक कण मात्र हूँ .
लेकिन वह मेरे आदर्श अवश्य हैं मैं समय न मिलने और कुछ व्यक्तिगत कारणों से
बहुत ही कम लिख पा रहा हूँ
आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर प्राप्त होता रहेगा ..............
सार्थक पोस्ट के लिए आभार.
ReplyDeleteinti achhi jankari ke liye dhanwad .dayanand ji ne samaj ko sahi disha di hai
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख लिखा आपने । ढेरों जानकारी मिल गयी
ReplyDeleteplease esse word verification hata dejiy - thanks
ReplyDeletebahut sundar post
ReplyDeletemaharshi dayanand ke baare men itna kuchh aaj hi jaanne ko mila.
aapka aabhar
स्वामी दयानंद सरस्वती जी के संबंध में विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
महर्षि दयानद सरस्वती एक महान समाज सुधारक थे ....संस्कृत का श्लोक वर्तनी की अशुद्धियाँ लिए हुए है और भर्तृहरि(भरथरी ?) का है ...
ReplyDeleteनिन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मी समाविशतु गच्चति व यथेष्टम
अद्यैव मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्यायात पथः प्रविचलन्ति पदम् न धीरा
श्रीमान सुनील कुमार जी, आलोक मोहन जी, पलाश जी, अदिति जी, महेंद्र वर्मा जी तथा अरविन्द मिश्रा जी हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया ..
ReplyDeleteपलाश जी मै ब्लॉग जगत में बिलकुल नया तथा अनाड़ी हूँ. मुझे नहीं पता की वर्ड वेरिफिकेसन कैसे हटता है. मैंने कोशिश की थी किन्तु सफल नहीं हुआ. यदि आपको पता हो तो बताएं .
श्रीमानअरविन्द मिश्रा जी संस्कृत का श्लोक वर्तनी की अशुद्धियाँ की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद मैंने सही श्लोक लिखने की कोशिश की थी किन्तु हिंदी फॉण्ट की गलती के वजह से अशुद्ध लिख गया आशा है आगे भी आप यूँ ही मार्गदर्शन करते रहेंगे.
very good madanji keep it up!
ReplyDeleteआर्य समाज हिन्दुओं की मूलभूत विचार धारा है वास्तव में दयानंद सरस्वती उसके प्रवर्तक न होकर पोषक हैं। जैसा की उन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में स्वयं कहा है की मैं कोई नया मत नहीं चला रहा हूँ केवल सत्य को सामने रखने का मेरा उद्देश्य है।
ReplyDeleteभारत में पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण में रहने वाले समस्त हिन्दू ही आर्य कहलाये जाते हैं न की कोई बहार से आक्रमणकारियों की टोली यहाँ पर आई थी। उन्होंने हिन्दुओं में फैले हुए अंधविश्वासों और पाखंडों को समाप्त करने की द्रष्टि से लोगो से कहा कि इन मुर्खता भरे क्रिया-कलापों को छोड़ कर हिन्दुओं के विद्वानों के समाज अथवा आर्य समाज में आ जाओ।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी के संबंध में विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
अज्ञानता और पाखंड को दूर करने में स्वामी दयानंद का योगदान अतुलनीय है। उनके महान कार्यों का गुणानुवाद हेतु आपको साधुवाद!
ReplyDelete==============
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
ek behtareen aur gyanvardhak post parhwane k liye bahut-2 shukriya
ReplyDeleteमदन जी! कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
ReplyDeleteओह! आपको वर्ड वेरिफिकेसन हटाने नहीं आता,
मदन जी!मेरे रहते चिंता मत कीजिये आइये आप को सिखाते हैं.......
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए----
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > सेटिंग्स >कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया आपका काम
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behtreen v sarthak likha hai aapne .........badhai
ReplyDeleteमदन शर्मा जी, नमस्कार....
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
ओह! आपको वर्ड वेरिफिकेशन हटाना नहीं आता चलिए मै बताती हूँ .......
डैशबोर्ड > सेटिंग्स >सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया काम आसान
इसे जरुर कीजियेगा धन्यवाद्
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मुझे महर्षी दयानंद के बारे में और उनका लिखा हुआ 'पढ़ना' प्रारम्भ से अच्छा लगता रहा है. आज भी ऐसा ही है.
ReplyDeleteदीप्ती जी, पूनम सिंह जी, डाक्टर डंडा लखनवी जी, विजय मुदगिल जी,
ReplyDeleteरजनी जी तथा श्रीमान प्रतुल वशिष्ठ जी आप लोगों ने यहाँ आने के
लिए समय निकाला इसके लिए आप विद्दत जन का बहुत बहुत धन्यवाद...
आशा है आगे भी आपका सुझाव यूँ ही हमें प्राप्त होता रहेगा !!
बहुत सही सन्देश दिया है इस पोस्ट में ...
ReplyDeleteस्वामी दयानंद सरस्वती जी के संबंध में विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteअज्ञानता और पाखंड को दूर करने में स्वामी दयानंद का योगदान अतुलनीय है। उनके महान कार्यों का गुणानुवाद हेतु आपको साधुवाद!
ReplyDeleteअज्ञानता और पाखंड को दूर करने में स्वामी दयानंद का योगदान अतुलनीय है। उनके महान कार्यों का गुणानुवाद हेतु आपको साधुवाद!
ReplyDeleteअज्ञानता और पाखंड को दूर करने में स्वामी दयानंद का योगदान अतुलनीय है। उनके महान कार्यों का गुणानुवाद हेतु आपको साधुवाद!
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